एक दिन मां के गोद में सर रख
बोली ,'सुन मेरी मैया !
सखी हो गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ,
कभी दाना चुग गई
कभी पानी पी गई
अन्न का कर्ज चुकाने
रोज आती है
मुझसे मिलने मैया
सखी बन गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ।।
सुबह-सवेरे जब भी
कोई न हो पास तुम्हारे
चूं-चूं,ची-ची कर तुम्हें बुलाती
दाना दे दूं तो खुश होकर
इधर -उधर नन्हें पंखों से
उड़ जाती पल में मैया
सखी बन गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ।।
जोड़ रही थी तिनका-तिनका
प्यारा घोंसला बनाने को
चीं- चीं, चीं- चीं करके
यहां वहां से तिनका लाकर
मेहनत करती जाती
खुश रहती थी,गुन गुन करती
सुन रही हो न मेरी मैया
सखी हो गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ।।
चिड़ा -चिड़ी मिलकरकें
घोंसला बनाया खुश होकर
आया एक बेरहम मानव
घोंसला उजाड़ फेंक दिया
चीं- चीं कर रो रही थी वो
नन्ही सी गौरैया
सखी बन गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया।।
आकर मेरे बरामदे में
इधर- उधर तकती रही
मानों मुझसे कहती जाती
क्यों उजाड़ा मेरा घर दैया रे दैया
मैया सखी हो गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ।।
हुआ व्यथित मन सुनकर
उसका चींचीं करुण रुदन
क्या कसूर था नन्ही सी जान का?
तुझे तनिक दया न आई उस पर
क्यों तोड़ा उसका घर
ये कैसा मानव हैं मैया?
सखी बन गई मेरी
एक नन्ही सी गौरैया ।।
बेटी! दया थी तेरी उस पर
तभी आती थी गौरैया
आंखें हुई नम सुनी पीर उस
खग शिशु की मैया गोरैया
सखी हो गई तेरी
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