खट्टी-मीठी यादों का पिंजर,अंखियों में लिए सारे मंजर
लेकर प्रेम की आस दिल में,उड़ते-उड़ते जा रहा दिसंबर ।।
दु:ख की बदली छम-छम बरसे
व्याकुल नयना पल-पल तरसे
हाथों में भर-भर चांदनी दरका
उड़ता जा रहा पाखी वक्त का
लेकर लम्हा-लम्हा नीला अंबर
उड़ते उड़ते जा रहा दिसंबर ।।
बेदर्दी काल मोहपाश का भंवरा
बिना डरें करता हर पल पहरा
प्रकाश की अलि सखी सुहानी
अरे!वक्त ने कब किसकी है मानी
जातें-जातें चुभाता है खंजर
उड़ते-उड़ते जा रहा दिसंबर ।।
गुजरा समय कहां फिर आता
वक्त नित-नित नवरंग दिखाता
स्वाति बूंद की सब हैं कहानी
मृग मरीचिका मधुमय सुहानी
मह-मह- महकता मुझ में अंदर
उड़ते-उड़ते जा रहा दिसंबर।।
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