नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
नव वय लतिका उर द्वार
खोल पंखुड़ी देख मधु बहार
कण्ठ अगणित नेह तार
जन जननि शरण लेते
नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
प्रेम भर ,कर प्रणय गान
भर छवि अब खुलें प्राण
श्वेत दृग नीर कल-कल
निश्चल बह रही रख ध्यान
देख पल्लव- दल किरणें
नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
श्याम केश मुख शोभा पा रहें
ज्यों बादलों में घिर चंद्रमा रहें
ज्योति की तन्वी किरण हंसी
गेह में प्रिय नेह भर- भर रहें
मन मयूर झूम-झूम नृत्य करतें
नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
खिल उठें नवयौवन लतिका
लहरा रहे हैं सारे तरु पतिका
कलरव करतें पाखी नभ में
मंद- मंदतर मलयज बहतें
नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
सरि में मुख अपना देखती
मिलन- वृन्त में वह झूमती
विस्मृत हो गई पटल से जग
कल्पना के मृदुल समीकरण में युवती
डूबती निर्मल प्रणय में बहतें
नयन नेह झर-झर झरतें
हृदय हाय! न धीर धरतें ।।
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© सुनीता जौहरी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
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