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गुनगुन और भगवान

गुनगुन नाम की एक प्यारी सी पांच साल की बच्ची थी । वह अपने माता-पिता के साथ गांव में एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहती थी ।उसके पिता दिन-भर हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी जमींदार से इतने पैसे नहीं जुटा पाते कि ठीक से दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके ।

गुनगुन के माता-पिता भगवान के अनन्य भक्त थे। प्रतिदिन जो भी रुखा- सुखा मिलता उसे भगवान को भोग लगाने की बाद ही खाते थे ।
एक दिन बरसात का मौसम था और गुनगुन के पिता को जमींदार के यह कोई काम न मिला उसके पिता उदास मन से घर वापस आए ।गुनगुन को भूख लगी थी वह रो रही थी ।

उसी समय एक ब्राह्मण कहीं से कथा कहकर वापस अपने घर जा रहा था। बरसात के कारण उसकी झोपड़ी के पास आकर खड़ा हो गया और बरसात से बचने के लिए मदद की गुहार करने लगा।
गुनगुन के पिताजी ने कहा,'ब्राह्मण  महाराज अंदर आ जाइए, इस टूटी -फूटी झोपड़ी में जहां भी सूखा स्थान मिले वहीं रुक कर आराम कर लीजिए।'
ब्राह्मण को एक छोटी सी दरी पर बैठाकर सभी चुपचाप बैठ गए।
' आप क्या करते हैं' गुनगुन ने पूछा।
ब्राह्मण बोला, मैं भगवान की कथा सुनाता हूं ।'
'क्या भगवान होते हैं?'
'हां होते हैं '
'आपने देखा है'
' नहीं ,देखा नहीं '
'तो कैसे मालूम ,कि भगवान होते हैं।'
' विश्वास और श्रद्धा के कारण मैं कह सकता हूं कि भगवान होते हैं ।'
'यह विश्वास व श्रद्धा क्या होती है ।'
'अभी तुम बहुत छोटी हो, पर इतना जान लो कि भगवान होते हैं ।यह सच है।'
सुबह होने पर ब्राह्मण तो चला गया पर गुनगुन ने भगवान को देखने की मन में ठान ली और भगवान को ढूंढने के लिए चुपचाप घर से  निकल पड़ी।

चलते -चलते एक जंगल में पहुंच गई। शाम होने लगी थी। वो थकी तो थी,उसे जोरों की भूख- प्यास भी लगी थी । एक पेड़ के नीचे उसे नींद आ गई ।

अचानक से उसकी नींद खुल गई उसने देखा उससे थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा शेर खड़ा था उसे खाने के लिए। वह दहाड़ रहा था गुनगुन भयभीत हो गई उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह पछता रही थी कि क्यों अकेली यहां चली आई। तभी वहां एक भटकती हुई बकरी आ गई उसे देखकर शेर  उसकी ओर लपका और पकड़ कर बकरी को खाने लगा । गुनगुन पेड़ के पीछे छिप गई।

शेर भरपेट भोजन कर चला गया तो वह आगे बढ़ी उसे सेब का एक पेड़ दिखा।वो सेब तोड़ने के लिए एक पत्थर उठाकर  सेब पर दे मारी ,सेब तो टूटकर गिरा साथ ही एक सांप भी वहां  प्रगट हुआ वो उसी पेड़ पर सो रहा था । उसने गुनगुन को डसने के लिए बन काढ़कर उसकी तरफ बढ़ा तभी अचानक उसी समय वहां एक मोर  आया और सांप को खा लिया।

गुनगुन भय से देखती रही फिर हिम्मत करके उसने सेब को उठा कर खा लिया और थोड़ा आगे बढ़ी तो उसे एक तालाब मिला। उसे प्यास तो लगी थी उसने जल्दी से तालाब के पास जाकर जल पीने के लिए तालाब के पानी में हाथ डाला ,तभी उस तालाब से एक मगरमच्छ निकला । वह गुनगुन को खाने के लिए लपका तभी कहीं से तेज धार चाकू आई और मगरमच्छ को घायल कर गई उसने पीछे मुड़कर देखा एक मछुआरा खड़ा था ।

जो जाल व चाकू लेकर मछली पकड़ने आया था गुनगुन भय व आश्चर्य से कांप रही थी।
मछुआरे ने उससे बड़े प्यार से पूछा कि,' तुम यहां इस सुनसान जगह पर अकेले क्या कर रही हो ।'

गुनगुन ने रोते-रोते उसको सारी बात बता दी । शिकारी उसकी बात सुनकर जोर से हंसा और कहा कि ,'मेरी प्यारी सी गुनगुन बिटिया ,क्या तुम्हें अभी तक भगवान नहीं दिखें।'
वह बोली ,'नहीं ।'
तब उस मछुआरे ने बताया कि,' तुम तो भगवान से मिल चुकी हो ।'
वह बोली ,"कैसे ?"
'सुनो, वो जो बकरी थी और मोर था वह सब तो भगवान के ही रूप थे ,जिसने समय-समय पर तुम्हारी मदद की और जानती हो ।
उस मछुआरे ने आगे कहा, 'इस तालाब में बहुत सारी मछलियां है।  तुम अपने मां- पिताजी को यहां ले आना वो मछलियों को पकड़कर बाजार में बेच देंगे और तुम लोगों की गरीबी भी दूर हो जाएगी।'

गुनगुन मछुआरे की बात ध्यान से सुन रही थी वह बोली,' हां, मैं मां- पिताजी को ले आऊंगी।'
'तुम्हें प्यास लगी थी न, लो पानी पी लो।' उसने कटोरे में तालाब से पानी  लाकर दिया।

जब गुनगुन ने पानी पी लिया तो देखा कि सामने से मछुआरा गायब हो चुका था ।वह इधर-उधर देखने लगी , मगर वह मछुआरा कहीं नजर नहीं आया।

अब वह वापस अपने घर आई उसे देखते ही उसकी मां ने उसे सीने से लगा लिया और रोते हुए बोली,' कहां चली गई थी हम सब कितने परेशान हो गए थे।'

उसने अपने माता-पिता को सारी बात बता दी उसके पिताजी ने कहा,' गुनगुन बेटा, तुम तो साक्षात् भगवान से मिलकर आई हो,तुम धन्य हो ।'
सच ही कहा गया है , "बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं।"आज गुंजन की वजह से उसके माता-पिता की भी गरीबी दूर हो गई,और उन्हें भी यह अहसास हो गया कि सच में भगवान सबकी सुनतें है।उनकी श्रद्धा तो पहले से ही भगवान पर खूब थी ।अब अगाध हो गया ।

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3 Comments

Anonymous said…
Lajawab

Sunita Jauhari :- Thanks for visiting my blog !! " सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं " - सुनीता जौहरी