प्रणय में सौगंध पलने दो ।।
मन मंदिर में इष्ट अकेला
खिला सूरज भोर का खेला
नेह वेग प्रमुदित प्रचंड प्रखर
कण-कण उर में स्नेह भर
मेघों को आज दूत बननें दो
प्रेम ज्योत नीरव जलने दो
प्रणय में सौगंध पलने दो ।।
हिय अंकित आलिंद स्वर्ण सुनहरीं
पिय मूरत मन पाटल पर ठहरी
नेह प्राण में निरंतर करतें स्पंदन
प्रणय में बनतें कण-कण चन्दन
चंदन मलय बयार बहनें दो
प्रेम ज्योत नीरव जलने दो
प्रणय में सौगंध पलने दो ।।
सकल विश्व आधार गहरी
चुंबकीय प्रेम उर में ठहरीं
रेखाओं में भर स्नेह प्रतिपल
शिराओं में जो करता हलचल
आज भुजाओं में भरनें दो
प्रेम ज्योत नीरव जलने दो
प्रणय में सौगंध पलने दो ।।
अनुराग भरा यह प्रेम राग
छिन-छिन झरता बन पराग
हंस रहें हैं हर पल यह नयन
प्रफुल्लित हैं चित- चितवन
पुलकित मुख को दर्पण बनने दों
प्रेम ज्योत नीरव जलने दो
प्रणय में सौगंध पलने दो ।।
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© सुनीता जौहरी
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
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खूबसूरत सृजन 👍