Sunita Jauhari : Welcome to my blog !! सुनीता जौहरी : सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं

प्रतियोगिता

विषय -आया सावन झूम के
विधा- पद्य 
दिनांक -19,दिन -शनिवार, रात्रि दस बजे तक 

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14 Comments

Anonymous said…
मेरा बेटा पूछ रहा है
पापा ! सावन क्या होता है ?

मेरी आँखें नम होती हैं
उतर रहे दिन बिसरे भूले
कुछ कुछ उसको बतलाता हूँ
बागों के आँगन के झूले

मेरा बेटा पूछ रहा है
पापा ! आँगन क्या होता है ?

वहीं फ्लैट में लेटे लेटे
आतीं याद पुरानी बातें
ऑंगन का सामूहिक सोना
गरमी की अदहन सी रातें

मेरा बेटा पूछ रहा है
पापा ! अदहन क्या होता है ?

सुनते ही यादों में महकी
माटी के चूल्हे की रोटी
छौंके हुये चने की खुशबू
बिन परथन की रोटी मोटी

मेरा बेटा पूछ रहा है
पापा परथन क्या होता है ?

यह कुछ भोले से सवाल है
मगर जवाब कहाँ से लाऊँ
महानगर में बँटते खटते
उसको मैं कैसे समझाऊँ ?

मेरा बेटा पूछ रहा है
पापा सावन क्या होता है ?

कवि - राजू धाकड़ सरल
जिला राजगढ़ (मध्यप्रदेश)
pragati24hours said…
*सावन के बहार में ना...*

✍🏻 ‘राज़’

एक दिन अवतू हे प्रिया ससुराल में,
सावन के बहार में ना...
झूला डाल दे बे निमिया के डार में,
सावन के बहार में ना...

गुझिया तोहसे हम बनवाईबे,
अपने हाथ से खियइबे।
चींटी काट ले बे घूंघट के आड़ में,
सावन के बहार में ना...

लाली चुनरिया पहिर के अइबू,
खुशबू पसर जाई अंगना।
सैंया कहिहें – “का परी लगतू”,
हम हँसी छिपाइब अंगना।
कजरारे नयन से ताकब हर बार में,
सावन के बहार में ना...

चूड़ी छनकई पैंजनिया बाजे,
झूला झुलइब तोहरे संग।
हम ओढ़नी से बाँधब तोहके,
तू मुस्की मारब अंग-अंग।
बिजुरी चमकेले जईसे, हम चमकीं प्यार में,
सावन के बहार में ना...

बरखा बरसे, अंगना भींजे,
तोहर बाहों में अँखियाँ रुक जाईं।
तू कहिह “बोलs ना कुछ अब”,
हम कहब – “लाजे गलबहियाँ झुक जाईं…”
सुगंध घुलल रहे तोहर उपहार में,
सावन के बहार में ना...

सासु बोलैं – "बहू सुधरि जइबू?"
हम कहब – "तोहके पियवा सुधरइहें!"
ननदिया हँस-हँस बइठल रहली,
हम कपड़ा गाढ़त मुसकइहें।
घरेलू प्रेम के गावत बिसराल गीत-गारी में,
सावन के बहार में ना...

एक दिन तू अइबू चुपचाप,
नज़रें झुका के बाजत चाल।
हम हथेली पे नाम लिखब तोहार,
लाली रंगाई सँवरल गाल।
मन के मंदिर में दीप जरइब हम विचार में,
सावन के बहार में ना...

- ©गुरुदास प्रजापति 'राज़'
ललिता said…
सावन का महिना जब भी आता है,
तुम संग जुड़ी यादें भी साथ लाता है।
प्यार करने को दिल मचल जाता है,
बरसात में संग तुम्हारे भीग जाने को जी चाहता है।
सावन के झूलों में संग तुम्हारे झूल जाने को जी चाहता है।
सावन के महीने को प्यार के मौसम में बदल देने को जी चाहता है।
और फिर इसी प्यार के मौसम में खुद को तुम में समां देने को जी चाहता है।

ललिता
Anonymous said…
बरसत मेघ
(छंद-मुक्त)गीत
धरती लागत अधिक सुहावन
बरसत घुमड़ -घुमड़ के मेघ।

दामिनी दमकत चमचम चमकत
पवन मचावे शोर,
पीहू-पीहू रटत पपीहा
प्रियतम आन मिलो चितचोर।

रज सुगंध मनभावन महकत
हरसिंगार झरे फूल,
पावन हुई धरा झलमल सी
दुख संताप गये सब भूल।

भारी कौतूहल भरमाये
पकड़े इंद्रधनुष की डोर,
पिया मिलन की आस लगाये
नाचे मगन ये मन का मोर।

भौंरे गुन-गुन पढ़ते पाती
मुझको याद पिया की आती
घूम-घूम खग गाते हिलमिल
सब मिल बहुत मचाते शोर।


सरोजिनी चौधरी
Anonymous said…
*आया सावन झूम के*

आया है सावन झूम के,बारह महीनों से घूम के,
प्रेम की कहानी ये लिखने लगी,
दिल की धड़कन हुई है तेज, प्रकृति की अजब ये खेल,
प्रेम का प्रभाव मन में दिखने लगी।

अलौकिक प्रेम की बौछार, धरती मां की है श्रृंगार,
मस्ती उमंग भाव खिलने लगी।
ताल तलैया नरवा नदियां,खेतों में लेत बलैया,
बीजों से नन्हें पौधें उभरने लगी।

सावन की सोमवारी,शिवजी की लीला न्यारी,
भक्तों में श्रद्धा जगने लगी।
काली बदरा उमड़ घुमड़, पत्ते उड़े फुरूर फुरूर,
बिजली चमाचम चमकने लगी।

सर-सर ,सर-सर हवा चली, नदियों के स्तर बढ़ चली,
बारिश की बूंदें जोर धरने लगी।
सावन की रिमझिम फुहार,धरा की सौंदर्यता अपार,
दिल में उत्साह प्रेम भरने लगी।

पावन सावन मास की बूंदें, दिल मगन तन-मन जब भींगे,
पल-पल की यादें उभरने लगी।
हरियाली धरा में छाये,हवा चले सुंदर लहराये,
फूलों से खुश्बू उपवन में बिखरने लगी।

नाग देव की पूजा करते,मंगला गौरी व्रत धारण करते,
घर-द्वार नीम की डारा लगने लगी।
हरियाली त्योहार मनाये, गांव गांव में खुशियां छाये,
गो माता को लोंदी की भोग लगने लगी।

आंक, धतूरा,फूल कनेर, बेल के पाती ढेरों ढेर,
दूध, दही,शिव में चढ़ने लगी।
जल लेकर कांवरिया चले,पैदल शिव की ओर बढ़े,
भक्तगण शिवालय चलने लगी।

सावन पूर्णिमा जब आय, रक्षाबंधन पर्व मनाय,
भाई बहनों के अटूट प्रेम बंधने लगी।
ये तो भाई बहन का प्यार , रक्षाबंधन का त्योहार,
यम, यमुना,बलि, लक्ष्मी की गाथा फलने लगी।

श्रीमती चन्द्रकला शर्मा
प्रधान पाठक
बेमेतरा छत्तीसगढ़
Anonymous said…
काशी साहित्यिक संस्थान ट्रस्ट
प्रतियोगिता के लिए
दिनांक:१९/०७/२०२५
विद्या: कविता
विषय:आया सावन झूम के

हरियाली छाई चहुंओर,
मेघो बरसे बिजली कडके;
हुई बरखा की फुहार, आया सावन झूम के।१।

तन मन संग भीग रहा,
मन भावो के तार छोड़ के;
रिमझिम बरसे नन्ही बूंदें,
आया सावन झूम के
।२।

कालें बदरा छाएं,
मोर हिरन नाचते;
गाने दो गीत खुशी के, आया सावन झूम के।३।

अब मन ना रहा उदास, गाए सावनी गीत नाच घूम के;
देख दिल मेरा धड़के, आया सावन झूम के।४।

फिजाओं में बहती मस्त बयार,
घर आंगन को चुमके;
खग गीत गाएं मल्हार, आया सावन झूम के।५।

बुझ गई धरती की प्यास,
पड़ गए बागों में झूले;
दिल उमंग तरंग संग फूले,
आया सावन झूम के
।६।

हुआ आनंदित हर मन,
प्रेम मिलन को मनवा तरसे;
रोको ना आज मुझे, आया सावन झूम के।७।

नभ बिजली चमके,
हाथों चूड़ियां ठमके;
गोरी के अंग अंग चूमके,
आया सावन झूम के
।८।

सोमवार मंदिर जाते, बिलीपान दूध चढ़ा के; शिव पूजन करके,. आया सावन झूम के।९।

'प्रेम' पुलकित हुए तन मन,
खुशी से झूम उठे;
मन भावो के तार
छेड़ के,
आया सावन झूम के
।१०।

पालजीभाई राठोड़ 'प्रेम' सुरेंद्रनगर गुजरात
Anonymous said…
" आया सावन झूम के "
आया सावन झुम के, नाचै कावरिया घुंम- घुंम के,
शिव भक्ति रस में झुम के, महादेव-महाशक्ति के चरणों को चूम के!!
श्रावणी फुहार लायी शिव प्रीत-मनुहार,
महादेव-गौरी की महीमा अपरंपार -अपार,
भक्त- गन गंगाजल ले चलें हरिद्वार केदlर,
अबकी सावन हो जाए सबका बेड़ा पार!!
भगवान हरि नारायन शयन करे योग् ध्यान में,
महादेव को सौप पालनहार की भूमिका में,
देव संहारकरता आज धरती का भार लिए,
चतुरमास में भक्त सेवको का उद्धार किये!!
महेश-भवानी सावन में झुला झूले,
धरती की हरियाली देख, कैलाश भी दोले,
बम-बम भोले स्वर नाद,धरा -अम्बर भी बोले,
प्रीति माधव चरण सेवा में माँ भवानी- भोले के होले!!
नारायन -नारायन करती प्रीति माधव,
अब बोले हर-हर बम-बम है,
बिना हरि के हर-हर को मनाना,
लगभग ही असम्भव है!!
यथा हरि विष्णु तथा बम भोले शिव,
प्रीति माधव के संग बम-बम बोले हर जीव,
सावन का हरियाली रंग प्रकृति ने बिखेरा है,
प्रीति माधव के हृदय में हर हर महादेव उकेरा है!!
प्रीति माधव "कवियित्री माधव भट्ट "✍️
सादर 🙏
Anonymous said…
सावन मधुमासी है, प्रेम राग का साथी है।
भूले बिछड़े यादों का सावन ही तो संगम है,।
कहाँ गया वो बचपन, जब राग-द्वेष भी हारा था।

कहाँ है वो झूला जिस पर कभी मैं झूली थी। सखियों संग हाथों में रची जो मेरी मेंहदी थी।
माँ संग बनी पूड़ी - कचौड़ी, भाभी संग हँसी ठिठोली थी।
कहाँ गये वो दिन मैं चाची लड्डू छीनी थी।

नानी को वो बुलवाना, मामा का घर आ जाना।
प्रेम बरसता नेह आँखों में, होठों पर खुशियाँ रखी थी।
कहाँ गये सावन गीत, जिनमें हिल-मिल बतियाँ थी।

रिमझिम -रिमझिम बरसा और कारे-कारे बदरा थे।
भीगों के तन-मन बरसा में हर -घर प्रेम को बाँटा था।
कहाँ गयी वो बूँदा-बांदी जिनको हमने निहारा था।
कुमकुम गंगवार बरेली उत्तर प्रदेश
Anonymous said…
काशी साहित्यिक संस्थान ट्रस्ट
प्रतियोगिता के लिए
दिनांक-१९/०७/२५
विधा-छंद
विषय-आया सावन झूम के

मुग्ध भाव से मन ये बोले, आया सावन झूम के।
धूम मचाते बदरा काले, मेघा गरजे घूम के।।

पवन वसंती डोल रही है, बहती मधुर बयार है।
भरे फूल उपवन में सारे , छायी अजब बहार है।।
आया सावन मास सुहाना, करे प्यार वो चूम के।
मुग्ध भाव से मन ये बोले, आया सावन झूम के।।

चंचल चपला चमक रही है, चातक गाता राग में।
चातक जैसे मैं भी तरसूँ, विरहन जलती आग में।
कब आओगे कहो पिया जी, नाच मयूरा घूम के।
मुग्ध भाव से मन ये बोले, आया सावन झूम के।।

भींगी-भींगी अँखियाँ कहती, नयन प्रेम भंडार है।
हौले-हौले बोल पिया जी, वैरी यह संसार है।।
हँसती हैं कलियाँ उपवन में, भौरे गाते धूम से।
मुग्ध भाव से मन ये बोले , आया सावन झूम के।।
अंजलि किशोर
Dr Rupali Garg said…


सावन आया सतरंगी रथ ले,
बूँदों की चूनर तन पे धरे।
हरियाली ओढ़े धरा मुस्काए,
नभ भी नाचे, बादल गाए।

कोयल कुहके आम की डाली,
झूले पड़ें पीपल-बरगद वाली।
बचपन हँसे, सखियाँ गाएँ,
प्रेम के गीत हवाएँ लहराएँ।

कच्चे रस्ते, मिट्टी की खुशबू,
भीगी धरती का मीठा जादू।
बिजुरी चमके, बादल गरजें,
मन की वीणा राग में बजे।

मेंहदी रचें, चूड़ी खनके,
सावन संग सब सपना चहके।
रस बरसाए रिमझिम फुहारे,
प्रकृति करे सुंदर इशारे।

सावन, तू मन का सावन बन जा,
हर सूने कोने में राग भर जा।
तेरी फुहारों में सुकून छुपा है,
हर दिल को तेरा इंतज़ार बना है।

डॉ रुपाली गर्ग नारी स्वर
मुंबई महाराष्ट्र


Anonymous said…
काशी साहित्य संस्थान ट्रस्ट
प्रतियोगिता के लिए
दिनांक:- १९/०७/२०२५
विधा:- कविता
विषय:- आया सावन झूम के

आया सावन झूमे के ।
बूॅंदें बरसे ,धरा को चूम के ।

सावन की रिमझिम फुहार ,
लेकर आई सपने हज़ार ।
उमड़- घुमड़ कर मेंघा बरसे ,
रिमझिम देख जियरा हरषे ।

बादल बीच ,बिजुरी नर्तन दिखलाए।
सूरज ,चंदा ,घन ओट छुप जाऍं।
रूत सुहानी सावन की आई ,
बरखा ने धरा को धानी चूनर पहनाई।

दादुर ,मोर ,पपीहा पिहु की टेर सुनाए।
अंबर धरा पर इंद्रधनुषी आभा फैलाए।
कोयल कूके डाली- डाली।
भॅंवरों की गुंजन मतवाली।

हरित रंगमंच ,नाच रही पुरवाई,
बिजुरी की गूॅंज , बाजी शहनाई।
पड़ ग‌ए झूले अंबुआ की डार- डार ,
गा‌ऍं कजरी गीत सखियाॅं ,बरखा की
बहार।

वृंदावन कान्हा की बाजी मधुर बाॅंसुरिया,
यमुना तट राधा- कान्हा नाचें ता-ता थैया ।
ढोलक झाॅंझ मंजीरे बाजे,
गोप- ग्वाल सब झूम के नाचें ।

हाथों मेंहदी ,चूड़ियों की खनखन,
सजा के बिंदिया,पायल की छन छन ।
पिया मिलन चली गोरी रिमझिम फुहार।
अखियों में सजा के सपने हज़ार।

नीता माथुर 'नीत'
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश
स्वरचित/ मौलिक रचना
नीलम प्रभा said…
आया सावन

मन की आँखों से बरसता सावन,
चुपचाप बहता भावों का नीर,
कुछ सपने पीछे छूट गए,
फिर भी हम बढे, लिए नयी तस्वीर।

चारों ओर फैली काली घटाएँ,
मन के बंजर खेतों को सहलाती,
मधुर बयार जब छू जाती,
नई उमंगों की खुशबू लुटाती।

सपनों की गलियों में चल झूम आते,
झूलते हैं पेड़ों की टहनियों पर,
हर बूंद लाती एक नयी यादें,
सूने मन को कर जाती है तर।

सूना आँगन हँसने लगता फिर,
ठंडी हवा बतलाती जीवन का सार,
बीते लम्हों की मध्यम परछाइयों से प्यार,
उम्मीद से फिर भर जाता मन का द्वार।

सावन आया नव उमंगें लेकर फिर,
बिखेर गयी खुशबू पुराने गलियों में आकर,
हरित चादर बिछी धरती पर
झूलों की पेंगें गगन लगी छूकर।

फिजाँ में घुला रंगों का त्योहार,
हर दिल में बसा अनोखा प्यार,
आओ बाँटें इस सावन की खुशियाँ हजार,
छू लें हर दिल की गहराइयों से प्यार।।

नीलम प्रभा सिन्हा
Ravi SHANKAR said…
Bahut khubsurat rachna
राजेश कुमार said…
🌹👍मुझे मेरी मां की याद आ गई, पहले मेरी मां भी कुछ इसी तरह की कजरी सावन में गाया करती थी।बहुत सुंदर लगता था, आज जब मैं इसे गुनगुना रहा हूं तो एकदम मां वाली फीलिंग आ री है।

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