शून्य की तलाश हैं
शुन्यता को घेरे हुए
शून्य से ही आश हैं ।
महाकाल के काल में
शून्यता के गाल में
जीवन से मृत्यु और
मृत्यु - जीवन ताल में ।
घाटों की कोलाहल
आरतियों की गूंज में
मंदिर के घंटियों का स्वर
तिलक सजे भाव पूंज में ।
दीपकों की रोशनियों में
शांत लहरों के स्वर में
वजूद है तुम्हारा कण-कण में
क्षणभंगुर और नश्वर में ।
तंग गलियों से गुजरता
बेजान जिस्म का वजूद
अवस्थाएं, स्थिति और
अंतिम सत्य का सच्चा रूप ।
शेष बचा मणिकर्णिका की
मुट्ठी भर गर्म चिंता की राख
जलती बुझती व्यक्तित्व की
चिंगारी बन चिनकती साख ।
अनवरत यात्रा का सफर
परे होकर सबसे स्वतंत्र
शून्य से शून्य तक का डेरा
समझ जीवन चक्र का तंत्र ।
बस शून्य हो जाना चाहती हूं
तोड़कर सारे लोक चक्कर
फिर भी जारी है शून्य से शुरू
शून्य और अनंत का सफर ।।
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© सुनीता जौहरी
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