तू ही खफ़ा है तो हम बात किससे करें ,
तानकर ख़ामोशी यूं ज़ुल्मो सितम ढ़ाया
तेरे बिना कोई नहीं हम वफ़ा किससे करें ,
मान लो जाना मोहब्बत अब भी मुझसे है
अब यूं ही दामन से तेरे लिपटे रहेंगे हम
कौन से धागे को कहो जुदा किससे करें,
जुल्फ़ों से यादों से या आंखों के मयखाने से
बात सिर्फ इतनी है खुद को रिहा किससे करें
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