तिमिर सघन यह छंट जाएगा
नव विहान नूतन मुस्कुराएगा ।।
दे रहा संदेशा नवप्रभात यह
मेघों के गुंजन में नित नएं
मुस्कान जगा एक दीप जला
धरती गगन मानों हिलें-मिलें
रुनझुन गुनगुन रवि गुनगुनाएगा
तिमिर सघन यह छंट जाएगा
नव विहान नूतन मुस्कुराएगा ।।
अनंत नाद ले धवल वसन संग
भरें उम्मीदों का प्रकाश तरंग
हैं प्रकृति की अद्भुत कलाकारी
करें नित नव अनुपम चित्रकारी
सुरभित मधुरिम विश्व जगमगाएगा
तिमिर सघन यह छंट जाएगा
नव विहान नूतन मुस्कुराएगा ।।
माना मानव जीवन सरल नहीं है
पर क्या मानव मन धवल नहीं है?
कहत रवि उदय होकर निशिदिन
क्या नीलगगन अब सजल नहीं है?
आशा प्रभात ही जीवन पार लगाएगा
तिमिर सघन यह छंट जाएगा
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