Sunita Jauhari : Welcome to my blog !! सुनीता जौहरी : सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं

कैद में आजादी

आजादी के 75वां साल पूरा होने की खुशी में भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है कहने को भारत 75 साल पहले आजाद हो चुका है, परंतु क्या सचमुच में आजाद हो चुका हैं?

रसोई घर में रितु आटा गूंथ रही थी । उसके सुंदर मासूम चेहरे पर जुल्फों की कुछ बदलियां बिखरी हुई थी, वह उसे बार-बार अपने हाथों की कलाइयों से पीछे करती परंतु बदलियां तो घिर-घिर आती उसके चांद से मुखड़े पर वो बस छा जाना चाहती थी। इसी तरह आटा और बादलों से जूझती वो अपना काम कर रही थी ,तभी पास में ही रखा उसका मोबाइल फोन बज उठा," लग जा गले कि फिर यह हंसी रात हो ना हो...
आंटा गूंथना छोड़ कर जल्दी से हाथ धो कर फोन देखा, फोन उसकी एक ऑनलाइन मित्र का था उसने उठाकर कहा,"हैलो"

"हैलो", रितु कैसी है तू ,तेरी तबीयत अब कैसी है?'

'ठीक हूं यार ,अब पहले से बेहतर हूं।'

' तो सुन, कल मेरे बेटे का बर्थडे है आ जाना।'

' ओके'

' ठीक है ,कल आना पहली बार  हम मिलेंगे, मैं बहुत उत्साहित हूं तुझसे मिलने के लिए।'

' मैं भी हूं यार, इतने दिनों से हम दोनों एक-दूसरे को जानते हैं परंतु कभी मिले नहीं, मैं जरूर आऊंगी तुझसे मिलने ।'

' ठीक है, मैं तेरा इंतजार करूंगी।'

रीतू मन ही मन सोचने लगी मैंने कह तो दिया पर ...

रात होने पर जब पति घर आए, खाना खिलातें वक्त, 'सुनिए '

'क्या है, तुम जानती हो न खाना खाते वक्त तुम्हारी बात सुनना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं, मैं शांति से खाना , खाना चाहता हूं। बोलो, क्या बोलना है '

पहले  तो रीतु सहम गई चुपचाप एक तरफ खड़ी हो गई, पर जब उसके पति ने कहा बोलो क्या कहना है तो उसने बहुत हिम्मत करके कहा,
' वो मेरी एक आनलाइन मित्र है, मैं उसे काफी दिनों से जानती हूं वह भी मुझसे अच्छे से बात करती है, हम दोनों अच्छी सहेलियों की तरह बात करते हैं, कल उसके बेटे का जन्मदिन है वह बुलाई है, आप मुझे वहां ले चलेंगे?'

'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली से मिलने ले जाऊंगा तुम सोच भी कैसे सकती हो, चुपचाप घर- गृहस्थी और बच्चों की देखभाल करो ,जो तुम्हारा काम है बस वही करो ,घर में मन नहीं लगता यह सहेली- वहेली क्या होता है।'

पति की यह बातें सुनकर रितु रोते हुए बोली,' आप कभी भी कहीं भी बाहर लेकर नहीं जातें, मेरी जो सहेलियां थी उनसे भी मिलने तो क्या बात करने भी नहीं देते, हमारी शादी के 20 साल हो गए ,वह सब भी आपके डर के मारे यहां नहीं आती, जब मैं उन सब से मिल नहीं सकती उनके सुख-दुख  में शामिल नहीं हो सकती तो उन लोगों ने भी अब मुझसे बात करना छोड़ दिया और आप के कारण यहां आना , कितने सालों बाद एक सहेली बनी है उससे मिलने का बहुत मन है पर आप अकेले कहीं जाने नहीं देंगे और न ही अपने साथ में ले जाएंगे।'

' मुंह बंद करो, जितना कहा जाएं उतना करो पति की आज्ञा न मानने वाली स्वेच्छाचारिणी होती है और तुम्हारा लक्षण भी वही दिख रहा है, जाओ जाकर रोटी ले आओं पति को खाना खिलाने में ध्यान नहीं है, घूमने -फिरने में मन लगा हुआ है।'

रितु चुपचाप अपनी आंखों में आंसू और मन के सारें उमंग, उल्लास और खुशियों को रोटी के गोल - गोल आकार में ढूंढती अपने पति की थाली में परोसनें लगी, जो बरसों से करती आई हैं।


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