Sunita Jauhari : Welcome to my blog !! सुनीता जौहरी : सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं

महिला दिवस पर आधारित प्रतियोगिता

आप सभी कमेंट में अपनी रचना पोस्ट करें

Post a Comment

16 Comments

Unknown said…
# नारी महान तुम
हर दिल का अरमान तुम
सारी दुनियाँ की एक नई पहचान तुम
हर रिश्ते में महान तुम
ममता लुटाती ,प्यार वर्षाती
अपनी नीदें दे सुलाती तुम
फिर भी थकती नहीं
हर पल मुस्कुराती तुम
चोट लगे तो , छिपा लेती
हर जख्म सह ,छुप कर रो लेती
दुनियाँ के ताने सुनती
फिर भी वक्त से नहीं हारती तुम ॥
हर मुश्किलों में मुस्कुराती
वक्त के थपेडों से भी नहीं घबड़ाती
अपने अकेलेपन से खुद लड़ती
छोटी -छोटी खुशियों से झुम उठती
औरों को खुशियो में ही अपनी खुशियाँ ढुढ़ँती
किसी से कोई चाह नहीं
सिर्फ लुटाना जानती
त्याग की प्रतिमूर्त्ति बनी
बलिदान की मिशाल बनी
जाने किस मिट्टी की बनी तुम ?
तेज आँधियों में भी नहीं बहती
सचमुच सारे जगत में हाे,
नारी महान तुम ॥


निवेदिता सिन्हा
भागलपुर ( बिहार )

















सर्वदात्री

यह सब चीजों की कर्ता है ।
यह सब चीजों की धर्ता है।।

बिन इनके यह संसार सुना हो जाता ।
आंगन भी सुना लगता।।

यही अबला है यही सबला है।
यही इस संसार की धूरी हैं।।

यही मां है यही बहन है।
यही अनेक रूप में आती है।।

प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से ।
सब जगह यह समाती हैं।।

धन्य है इनकी ममता।
यह ममता की मूरत हैं।।

राम शरण सेठ
छटहाॅं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश

स्वरचित मौलिक
अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित
Unknown said…
# नारी महान तुम
हर दिल का अरमान तुम
सारी दुनियाँ की एक नई पहचान तुम
हर रिश्ते में महान तुम
ममता लुटाती ,प्यार वर्षाती
अपनी नीदें दे सुलाती तुम
फिर भी थकती नहीं
हर पल मुस्कुराती तुम
चोट लगे तो , छिपा लेती
हर जख्म सह ,छुप कर रो लेती
दुनियाँ के ताने सुनती
फिर भी वक्त से नहीं हारती तुम ॥
हर मुश्किलों में मुस्कुराती
वक्त के थपेडों से भी नहीं घबड़ाती
अपने अकेलेपन से खुद लड़ती
छोटी -छोटी खुशियों से झुम उठती
औरों को खुशियो में ही अपनी खुशियाँ ढुढ़ँती
किसी से कोई चाह नहीं
सिर्फ लुटाना जानती
त्याग की प्रतिमूर्त्ति बनी
बलिदान की मिशाल बनी
जाने किस मिट्टी की बनी तुम ?
तेज आँधियों में भी नहीं बहती
सचमुच सारे जगत में हाे,
नारी महान तुम ॥


निवेदिता सिन्हा
भागलपुर ( बिहार )










Unknown said…
# नारी महान तुम
हर दिल का अरमान तुम
सारी दुनियाँ की एक नई पहचान तुम
हर रिश्ते में महान तुम
ममता लुटाती ,प्यार वर्षाती
अपनी नीदें दे सुलाती तुम
फिर भी थकती नहीं
हर पल मुस्कुराती तुम
चोट लगे तो , छिपा लेती
हर जख्म सह ,छुप कर रो लेती
दुनियाँ के ताने सुनती
फिर भी वक्त से नहीं हारती तुम ॥
हर मुश्किलों में मुस्कुराती
वक्त के थपेडों से भी नहीं घबड़ाती
अपने अकेलेपन से खुद लड़ती
छोटी -छोटी खुशियों से झुम उठती
औरों को खुशियो में ही अपनी खुशियाँ ढुढ़ँती
किसी से कोई चाह नहीं
सिर्फ लुटाना जानती
त्याग की प्रतिमूर्त्ति बनी
बलिदान की मिशाल बनी
जाने किस मिट्टी की बनी तुम ?
तेज आँधियों में भी नहीं बहती
सचमुच सारे जगत में हाे,
नारी महान तुम ॥


निवेदिता सिन्हा
भागलपुर ( बिहार )










Unknown said…
*स्त्री*
2212 2212 2212 2212

कोई ये दो आंखे छिना ,इनकी रही ना रौशनी
ताले लगा कोई गया, घुट घुट मरी प्रबोधनी।

सीता कहाने शून्य मन कर आग में है दहकती
रख धूप गर्मी पास अपने, बांटती है चाँदनी।

आवाज देने शब्द खोयी सुनने को बस कर्ण है
अपराध सब की ओढ़ कर चुप पाप की वह मोचनी

अभिमान दे दो प्राण में स्त्री जीवित इंसान है
दे कर तिलांजल रिक्त इक्षा वह कहाती कामनी।

बुझ सूझ जीती है ,अबुझ कहला न रहती रंज में
आँचल समेटे लाख गम चुप चाप रहती दामिनी

स्वर सूर कंठ करे दमन रस राग से मुख मोड़ कर
रख नाम खिल्ली है उड़ाते लोग कहते रागनी।

पहचान छीन गया पिता का नाम छीन लिया पिया
नारी महाभागा कहाती है कहाँ की भागिनी।

*ममता*✍️
Unknown said…

*दोयम*

तू औरत है तो दायरे में पढ़ और लिख।
तुझे सांस लेना है एक परिधि में ये सिख।

तू औरत है मुँह में तो जुबाँ रखना नही।
हुक्म के अलावा और भी कुछ सुनना नही।

मेरी पसन्द देख और कुछ देखने हक नही।
कमजोर है तू यही सजा तेरी इसमें शक नही।

हुश्न शबाब काफी दिमाग जरूरत नही।
मै दिन दुनिया हूँ तेरी रख और हसरत नही।

चार दीवारी रह तेरी क्या हुनर शौहरत ।
कैद की बुलबुल रख न उड़ने की तू चाहत ।

मेरे लिए फक्र जो तू शर्म कर हो आहत
खून निचोड दो वक्त रोटी दे दूं समझ राहत

ये बंदिशें दायरे समझ नही फ़जीहत
यही है तकदीर तेरी यही तेरी जन्नत।

ख़ौफ़ दिखा जहाँ की जुल्म सितम करुंगा
तू मेरी खुशियों लिए करती रह बस मन्नत

ममता✍
नारी दशा-दिशा

(१)
आदर्श भारतीय नारी

लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती हो
तुम भारत भू की नारी हो ।

श्रीहरि को वैकुण्ठ धाम से
भू पर लाने वाली माँ हो
तुम हो अदिति, रेणुका तुम हो
तुम्ही देवकी, कौसल्या हो
तुम अजेय चंडिका, भवानी
धर्मद्रोहियों पर भारी हो ।

तुम हो शक्ति पुण्यश्लोकों की
दमयन्ती, द्रौपदी पुनीता
तुम्ही सुनयना, तुम्ही रुक्मणी
तुम रघुवीर राम की सीता
पापों की लंका जल जाती
जिससे, वह तुम चिनगारी हो ।

पति के, पुत्रों के पापों से
पीडित पुण्यात्माएँ तुम हो
खल भर्ता की शक्ति भले हो
मयकन्या हो, पुण्य कुसुम हो
परिणय-सुख में निविड़ अँधेरा
जीने वाली गांधारी हो ।

(२ )

श्रद्धा केवल नारी है

साहस भरी हुई आशा
जब सजीव हो उठती है
नर के जीवन में श्रद्धा
या नारी बन आती है।

श्रद्धा भले अलौकिक हो
नारी लौकिक होती है
नर के अंतर्मन दोनो
बीज प्रेम के बोती हैं।

नारीवत श्रद्धा जिस पल
नर के हृदय मचलती है
प्रेम-बीज के पौधों सी
फसल भक्ति की पलती है।

श्रद्धा भक्ति-स्वरूपा है
नर के मद पर भारी है
हो सकती पुल्लिंग नहीं
श्रद्धा केवल नारी है।

(३)

पुरुष का अस्तित्व

प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति जगदंबा भवानी कालिका
पुरुष केवल निरूपण वात्सल्य का;
प्रकृति मां है, पुरुष उसका पुत्र है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति रति है, पुरुष काम अनंग है
सती से शिव का सनातन संग है;
प्रकृति नर की शक्ति है, नर शाक्त है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति तनया है सिया जनकात्मजा
सत्य मानो है जनक की प्रेरणा;
प्रकृति सुकुमारी पुरुष का चिंत्य है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

-रमेश कुमार शर्मा,
६/१३४ मुक्ता प्रसाद नगर,
बीकानेर-३३४००४ (राजस्थान),
चलभाष:-७६२७०११६१९


नारी दशा-दिशा

(१)
आदर्श भारतीय नारी

लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती हो
तुम भारत भू की नारी हो ।

श्रीहरि को वैकुण्ठ धाम से
भू पर लाने वाली माँ हो
तुम हो अदिति, रेणुका तुम हो
तुम्ही देवकी, कौसल्या हो
तुम अजेय चंडिका, भवानी
धर्मद्रोहियों पर भारी हो ।

तुम हो शक्ति पुण्यश्लोकों की
दमयन्ती, द्रौपदी पुनीता
तुम्ही सुनयना, तुम्ही रुक्मणी
तुम रघुवीर राम की सीता
पापों की लंका जल जाती
जिससे, वह तुम चिनगारी हो ।

पति के, पुत्रों के पापों से
पीडित पुण्यात्माएँ तुम हो
खल भर्ता की शक्ति भले हो
मयकन्या हो, पुण्य कुसुम हो
परिणय-सुख में निविड़ अँधेरा
जीने वाली गांधारी हो ।

(२ )

श्रद्धा केवल नारी है

साहस भरी हुई आशा
जब सजीव हो उठती है
नर के जीवन में श्रद्धा
या नारी बन आती है।

श्रद्धा भले अलौकिक हो
नारी लौकिक होती है
नर के अंतर्मन दोनो
बीज प्रेम के बोती हैं।

नारीवत श्रद्धा जिस पल
नर के हृदय मचलती है
प्रेम-बीज के पौधों सी
फसल भक्ति की पलती है।

श्रद्धा भक्ति-स्वरूपा है
नर के मद पर भारी है
हो सकती पुल्लिंग नहीं
श्रद्धा केवल नारी है।

(३)

पुरुष का अस्तित्व

प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति जगदंबा भवानी कालिका
पुरुष केवल निरूपण वात्सल्य का;
प्रकृति मां है, पुरुष उसका पुत्र है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति रति है, पुरुष काम अनंग है
सती से शिव का सनातन संग है;
प्रकृति नर की शक्ति है, नर शाक्त है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

प्रकृति तनया है सिया जनकात्मजा
सत्य मानो है जनक की प्रेरणा;
प्रकृति सुकुमारी पुरुष का चिंत्य है
प्रकृति से ही पुरुष का अस्तित्व है |

-रमेश कुमार शर्मा,
६/१३४ मुक्ता प्रसाद नगर,
बीकानेर-३३४००४ (राजस्थान),
चलभाष:-७६२७०११६१९


बहुत सुन्दर🙏 आदरणीय
बहुत सुन्दर🙏 आदरणीय
दो - दो बार पोस्ट हो गई है आदरणीय
वाह दी बहुत सुन्दर🙏
सही कहा आपने
बहुत खूब आदरणीय
महिला दिवस 08 मार्च के उपलक्ष्य में निवेदित हैं कुछ पंक्तियाँ,,,👇
*अबला बन रही है सबला*
अबला बन रही है सबला
हाँ इसी जालिम समाज में,,
जहाँ कोंख में ही बेटियों को मार
दिया जाता था भी और है भी !!!

अबला बन रही है सबला
उन्हीं घिसे-पिटे रिवाजों में,,
जहाँ बेटों को बेटियों से बेहतर
माना जाता था भी और है भी !!!

अबला बन रही है सबला
जहाँ हबस के पुजारियों द्वारा
बड़ी बेरहमी से पाक दामन मैला
किया जाता था भी और है भी!!!

अबला बन रही है सबला
उसी घर आँगन में ,,,
जहाँ लड़की पैदा होने पर मातम
मनाया जाता था भी और है भी!!

क्या अजीब बात है,,गजब इत्तफाक है !!
अबला बन रही है सबला
उन्हीं ओछी मानसिकता वालों के बीच ,
जहाँ महिलाओं को भोग की वस्तु
समझा जाता था भी और है भी!!

अबला बन रही है सबला
झेलकर अनंत विपदाओं को
असहनीय पीड़ाओं को,
बना रही है निज हस्ती ऊँची
बन रही है राष्ट्र का गौरव !!
फिर भी किंचित भयभीत है
अपनी अस्मत को लेकर !!!
कारण अस्मत के लुटेरे थे भी और हैं भी ।।

अबला बन तो रही है सबला
महिला सशक्तिकरण की धुन पर !
मगर क्या सशक्त है महिला??
नैतिकता के नियमों पर???
वाकई कोई दबाव नहीं है इसके
मनचाहा जीवन यापन करने पर?
जबकि अंकुश लगाने परंपरा का
चाबुक था भी और है भी!!

अबला बन रही है सबला
घोंटकर मुसीबतों का गला
बस चाहती है दुनियाँ वालों से
इसकी कोशिशों के पर ना कुतरो !
शांत ही बने रहने दो इसको
चंडी बनने पर ना विवश करो !!!
क्योंकि रौद्र रूप महिलाओं का
घातक था भी और है भी ।
लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान©
सागर मध्यप्रदेश ( 05 मार्च 2022 )
मेरी यह रचना पूर्णतः स्वरचित मौलिक व प्रामाणिक है सर्वाधिकार सुरक्षित हैं इसके व्यवसायिक उपयोग करने के लिए लेखिका की लिखित अनुमति अनिवार्य है धन्यवाद 🙏

Sunita Jauhari :- Thanks for visiting my blog !! " सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं " - सुनीता जौहरी