Sunita Jauhari : Welcome to my blog !! सुनीता जौहरी : सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं

मातृ दिवस ( Mothers day) आधारित प्रतियोगिता

आप सभी अपनी रचना ब्लाग के कमेंट बॉक्स( Comment) में ही पोस्ट करें🙏 सिर्फ कमेंट में पोस्ट की गई रचना ही प्रतियोगिता में शामिल की जाएगी। 
प्रतियोगिता का निर्णय काशी साहित्यिक समूह की निर्णायक मंडल करेगी, जो सर्वमान्य होगी । किसी तरह का विवाद मान्य नहीं है। 

Post a Comment

52 Comments

Anonymous said…
माॅं
एक अनोखा माध्यम।
हम सभी का एक आधार है।।

हर परिस्थितियों में यह साथ देती है ।
सुख हो या दुःख हर सहयोग रखती है।।

अपने खाने से पहले हम सब।
की खाने की ख्याल रखती है।।

सुबह क्या हम खाएंगे।
रात में ही यह तय कर लेती है।।

यह रिश्तो की शुरुआत करती है।
जो हर रिश्ते को बांधे रखती हैं।।

हर समय मां का सहारा होता है ।
जो हम सभी के लिए कहीं न कहीं एक अनमोल सहारा होता है।।

देवता हो या हो मानव।
सभी इसके ऋणी है।।

जो आदि युग से चली आ रही परंपरा ।
वह आधुनिक युग तक चल रही है।।

डॉ राम शरण सेठ
छटहाॅं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश

स्वरचित मौलिक
अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित
Anonymous said…
क्या रचना अप्रकाशित होनी चाहिये?
Anonymous said…

# शीर्षक - माँ तुम्हारें बिना


कितना मुश्किल है जीना
माँ तुम्हारें बिना
कितना कुछ था कहना
कितना कुछ था सुनना
कितना कुछ था पूछना
कितना कुछ था बताना
कितना पल था तुम्हारें संग गुजारना
कितनी रातें थी तुम्हारें आँचल में सोना
तुम्हारा मेरा वो चेहरा सहलाना
मेरी हर उदासी में मीलों दूर से
महसूस कर तुम्हारा फोन करना
बिन बोले हर फरमाइसें पूरी करना
पर एक दिन अचानक तुम्हारा
चिर निंद्रा में सो जाना
जीवन के राह में तुम्हारी
ममता का साया छिन जाना
सच माँ बहुत मुश्किल है
जीना माँ तुम्हारें बिना
माँ तुम्हारें बिना

निवेदिता सिन्हा
भागलपुर ,बिहार


Anonymous said…
माँ
🔥🔥🔥🔥🔥🔥
माता तेरे देश में ये आज क्या क्या हो रहा है
प्रेम की जगह हिंसावाद हो रहा है
बच्चे तेरे खुद ही लड़े जा रहे हैं
एक दूजे को ही ख़तम किए जा रहे हैं
निर्धन और धनहीन होता जा रहा है
धनिको को और थोड़ा ज्यादा धन भा रहा है
देविया कहा जाता रहा है जिन्हे देश में
उनका ही आंचल खींचा जा रहा है
गली गली नन्ही प्यारी प्यारी कलियो को
मालियो के द्वारा ही नोचा जा रहा है
छोटे छोटे बच्चों की बलि चढ़ा देते यहां
ऐसे निर्दैयो को सजा देना चाहिए
मासुमो की रक्षा करने के लिए
दुष्टों को क्रोधाग्नि में जला देना चाहिए
गली गली कूचे कूचे बैठे हैं दरिंदे यहां
ऐसे भेड़ियों पे निगाह होना चाहिए
देवी हो तो क्रोध की अग्नि
बरसाओ अब तुम माता
इन राक्षसों का संहार होना चाहिए
कह दो अगर कुछ कर नहीं सकती तो
भक्तों की मा भी कहलाना नहीं चाहिए
चूक हुई हो तो माता माफ कर दीजिए
बच्चे तेरे ही है मन साफ कर लीजिए
दर्द की पराकाष्ठा हो चुकी है
इसलिए जुबान कुछ भी कह रही है
दुनिया की आखिरी उम्मीद बस तुम हो
भक्तों के भरोसे पे मोहर लगा दीजिए
अपनों के लिए हम खुद लड़ सके यहां
भय मुक्त अपना भारत देश बना दीजिये

शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़
Bhoomika Sharma said…
A True Bond Of Love
A relationship strong with mother with sublimity ,
With all thoughts of closeness and proximity.
A true shelter of kindness,
Spread light of joy and happiness.
An enlightened lamp of sincerity ,
With all in eyes honesty.
She possess quality of patience and delight,
She give in life splendour light.
She is an embodiment of capability and strength,
Life sparkles with star of faith.
A symbol of unprecedented and unique power,
With lots of blessings and love to shower.
A symbol of divinity and prudence,
She is a precious gem with intense.
She is my life-creator,
She is lovable and caretaker.
She is a symbol of humanity,
She nourishes life and teaches morality.
She is amazing and dynamic personality,
She possess all capability.
She give my life splendour light,
Take me to happy sight.
She is full of zest and zeal,
With you my life prosper with good spirit and healthy will.
You are my love and care,
With you all cheerfulness are share.
In my life you are torch-bearer,
With you my life is curer.
The symbol of love and care,
To make a life stronger to share.
The life of inspiration,
The life to reach destination.
The life of new experience and excitement,
The life of a determination and enjoyment.
Serenity arrives and you be peaceful,
With cheerfulness you be hopeful.
A Life of trust and sincerity,
A Life of lots of faith
Of that life of joy,
To be calm to enjoy.
Mother is a true bond of love,
With you life is a mirror of stuff.
With rays of positivity,
She spread in life elegance and felicity.
She is an exuberant pearls,
Bring in my life miracles.
-Bhoomika Sharma
Gwalior










Anonymous said…
संसार है बेटी

बोझ नहीं, भविष्य है बेटी
मेरा मान-सम्मान है बेटी

दो कुलों को संवारती है बेटी
कल, आज और कल है बेटी

माता-पिता का अभिमान है बेटी
खुशियों की बौछार है बेटी

संस्कार और सौभाग्य है बेटी
भगवान की अनमोल सौगात है बेटी

कभी सरस्वती, कभी लक्ष्मी
कभी दुर्गा का अवतार है बेटी

घर-आँगन करती, गुलजार है बेटी
हर काम में हाथ बटाती है बेटी

माता-पिता का साथ निभाती है बेटी
हर मुसीबत में साथ दें, उसका नाम है बेटी

समाज का आधार है बेटी
कुछ लोगों के लिए भार है बेटी

कविताओं की पंक्तियों में न समाए
वह अथाह सागर है बेटी

डॉ॰ राधा दुबे जबलपुर (म.प्र.)
स्वरचित, मौलिक व सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
Anonymous said…
सराहनीय कार्य
Anonymous said…
नमनमंच
दिनांक: ०५/०५/२०२२
कविता का विषय: मां।

भगवान ने पूर्ण ब्रह्मांड बनाया,
पर हर जगह वे नहीं आ सकते इसलिए 'मां' को बनाया।

बच्चों की ज़िंदगी में उसकी अहम भूमिका रहती है,
उनकी ज़िंदगी में पहली शिक्षिका होती हैं,
बच्चे को जन्म देते वक्त स्वयं तकलीफों से गुजरती है,
उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ सही-गलत का फर्क भी समझाती है।

अकेले वह पूरे घर को संभालती है,
सभी लोगों का ख्याल रखती है,
खुद आधी नींद में जागकर,
वह दूसरों को वक्त से सुलाती है।

कभी वह सौम्य बनकर बच्चों को समझाती है,
तो कभी उनकी गलती के लिए कठोर बनकर डांटती है,
पर उस डांट में भी उनका छुपा हुआ प्यार है,
जो बेहद बेशुमार है।

मुसीबत के वक्त वह स्वयं काली बनकर रक्षा करती है,
और बच्चों को भी लड़ाई करना सिखाती है,
ताकि बच्चे वक्त आने पर स्वयं की रक्षा कर सकें,
खुद को पर्वत जितना मज़बूत कर सकें।

मां के बारे में जितना कहेंगे होगा कम,
आंखें हो जाएंगी नम,
परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होती है,
दूसरों की खुशी के लिए स्वयं की खुशियों का बलिदान देती है।

मां की विभिन्न भूमिकाएं होती हैं,
कभी सासुमा, गुरु मां, नानी मां, दादी मां, राजमाता होती हैं,
हर एक भूमिका में अपनों का उन्होंने साहस बढ़ाया है,
सूझ-बूझ से परिस्थिति से निपटना सिखाया है,
गाय के रूप में सबको दूध देती हैं,
तो कभी नदी के रूप में सबका भला करती हैं।

देवताओं में भी उनका सबसे ऊंचा स्थान है,
उनका चरित्र सबसे महान है,
मां दुर्गा ने बताया है कि असंभव को संभव किया जा सकता है,
और इसके बारे में ज्ञान संस्कृति से हासिल किया जा सकता है,
उन्हीं की वजह से आज जीवित है सारा जहान,
शास्त्रों में भी मां को माना गया है भगवान समान,
प्रकृति और वसुंधरा के रूप में बनती हैं मां वरदान,
ज़रूरी है करना उनका मान-सम्मान।

अंत में बस इतना कहूंगा,
मां के साथ हर पल बिताने की सलाह दूंगा,
जितना हो सके उतना उनकी मदद करना,
उनकी तकलीफों के वक्त उनका साथ निभाना,
कभी‌ उन्हें अकेला महसूस मत होने देना,
हमेशा उनका ख्याल रखना।

शुक्रिया!
-कवि मकरंद रमाकांत जेना-
सुंदर सृजन आदरणीय
Wowww... Very nicely written
Bhut खूब लिखा आपने
वाह वाह बहुत सुंदर
Anonymous said…
नमन मंच
**माँ ईश्वर का वरदान**
इस पृथ्वी पर तू ईश्वर का वरदान है माँ,
बच्चों के लिए तो पूरी कायनात है माँ।
उगली पकड़ कर चलना सिखाती,
गिरते हुए को उठना सिखाती ।
अच्छे बुरे का फर्क समझाती ,
जीवन का हर पाठ पढ़ाती ।
त्याग और प्यार की मूरत है माँ,
जीवन में फूलों का अहसास एहसास है माँ।
काँटों भरी राह में फूलों की राह है माँ।
तपती धूप में पेड़ो की छाँव हैं माँ,
देवकी जैसी त्याग मयी है माँ।
यशोदा जैसी प्यारी है माँ ।
रानी झाँसी सा प्रचंड रूप भी है
अनुसुइया जैसा देवत्व रूप भी है ।
ईश्वर की एक अदभुत रचना है माँ
बच्चों के लिए आशीर्वाद है माँ।
तेरी सी निश्छल ममता कहीं नहीं,
तेरी अनमोल ममता कहीं नहीं।
अनपढ़ हो या पढ़ी लिखी,
माँ तो माँ होती है।
तेरी गोद सी गर्माहट कहीं नहीं मिलती है।
तुझे बनाकर ईश्वर भी हारा ,
तेरे सामने झुकते संसार सारा ।
माँ की आँख से आँसू गिरने न देना।
माँ को दुखी न होने देना ।
सरोज गर्ग नागपुर महाराष्ट्र
Anonymous said…

मां तुहरे अॅचरा के छहिया में
सारा दर्द मिटा जाला
जब जब ई मन घबराईल मां
तुहसे बतिया के जियरा जुड़ा जाला
तू ममता के मूरत हऊ
या भगवान के सूरत हऊ
जब सारी दवाई बेअसर होला
तब तू आके नजर उतारेलू
जाने का शक्ति बा तुहरे में
हर खुशी के केवड़ियां खुल जाला
तू स्वस्थ रह तू मस्त रह
आशिष बनल रहे हमरा पर
केतनो केहू दर दर भटके
भाग्य कहीं भी ना चमके
मां तुहरे आशिष के जंतर से
किस्मत के केवड़ियां खुल जाला

मातृदिवस के हृदय से बधाई मां
अंजनी त्रिपाठी
Anonymous said…
फिर से मुझे छुपा ले माँ अपने आँचल के
कोने में ।
जो जो खुशी तेरे दामन में है वो नहीं है दुनिया के किसी कोने में ।
वो खुशी अब हाथ में फोन होने पर भी नहीं मिलती जो मिलती थी तेरे लाए हुए खिलौने में ।
ये दुनिया तो बात बात पर है रूठ जाती ।
और एक तू थी जो मेरी ग़लती होने पर भी
मुझे मना लेती ।
अब जो मजा किसी के साथ हँसने में भी नही आता ।वो मजा आता था तेरी मार खाकर रोने में फिर मुझे छुपा ले माँ अपने आँचल के कोने में ।
लेखिका नीलम सिंह
Anonymous said…



. मां

रह रह के मुझे तुम याद आती हो मां।
इसी तरह ही सही बहुत रुलाती हो मां।
कुछ इस तरह से यादों में आके तुम,
बिना बात के ऐसे क्यों सताती हो मां।

सुना है कि सुख के साथी सभी दुख में न कोई,
मगर मेरी हंसी में हंसी तुम संग में मेरे तुम रोई,
कांटों भरी हो या फूलों भरी,
हर राह में तुम ही हो जो साथ निभाती हो मां।


मां के दिल से अच्छा कोई ठिकाना नहीं,
मां की ममता से बड़ा कोई खजाना नहीं,
हर घड़ी में मुस्कुराना सिखाया हमें,
खुद चाहे अपने आंसू छिपाती हो मां।

बचपन में हमने तुम्हें सताया बहुत,
रातों को हमने तुम्हें जगाया बहुत,
ख्वाबों में आके अब‌ तुम मेरी,
नींदें चुराती हो मां।

( स्वरचित एवं मौलिक )
सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

*****
Anonymous said…



. मां

रह रह के मुझे तुम याद आती हो मां।
इसी तरह ही सही बहुत रुलाती हो मां।
कुछ इस तरह से यादों में आके तुम,
बिना बात के ऐसे क्यों सताती हो मां।

सुना है कि सुख के साथी सभी दुख में न कोई,
मगर मेरी हंसी में हंसी तुम संग में मेरे तुम रोई,
कांटों भरी हो या फूलों भरी,
हर राह में तुम ही हो जो साथ निभाती हो मां।


मां के दिल से अच्छा कोई ठिकाना नहीं,
मां की ममता से बड़ा कोई खजाना नहीं,
हर घड़ी में मुस्कुराना सिखाया हमें,
खुद चाहे अपने आंसू छिपाती हो मां।

बचपन में हमने तुम्हें सताया बहुत,
रातों को हमने तुम्हें जगाया बहुत,
ख्वाबों में आके अब‌ तुम मेरी,
नींदें चुराती हो मां।

( स्वरचित एवं मौलिक )
सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

*****
Anonymous said…
माँ
********

माँ तू ही सृष्टि का सार है,
तू ही आधार औ विस्तार है।
हर दिन देती है जन्म-
न जाने कितनों को,
जड़- चेतन -
खग- मृग, पशु, मानवों को!
हृदय का रक्त
बनाकर दुग्ध रूप -
वक्षपान कराती है.....
संलिप्त रहती,
मल- मूत्र विष्ठा में वत्सों की-
ममता लुटाती, हरषाती है!
माँ तू ना शब्द है,
ना भाव है, ना देह है ना विदेह है....
तू सम्पूर्ण ब्रह्म- प्रेम है, अनंत है,
असार है....!
जब से सृष्टि शुरु हुई तू थी
समाप्त होगी, तू रहेगी..
पुनर्निर्माण में तू ही होगी...
क्योंकि तू सृष्टि की नियामक है,
तेरे विना सृष्टि नहीं, पालन नहीं...
नहीं विस्तार!
माँ तू और तेरी ममता...
है अपरम्पार!!!

डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
पटना बिहार
मो० 6205074693
Anonymous said…
Anonymous said…
*मां*
ठहरना हो,
जब भी तुम्हारा ,
गिरह खोलना ,
मां के मन की,
कभी ।
त्याग तपस्या की डोर में बंधे,
नम पलकों से चुनना,
अनंत अनछुए,
वो स्नेह के मोती कभी ।
डूब जाना,
स्नेहिल पावन गंगा के,
तठबंध में,
देखना सफ़र,
कितना छोटा होता है,
चारों धाम का कभी ।
यूं तो दामन में,
लिए चलती है,
दुआओं का धरा अंबर,
मगर तुम,
आंचल सिर पर रखकर ,
महसूस करना वो,
स्वर्णिम छांव कभी ।
बिखरे हैं ढेरों,
मौन सवाल,
जो मुस्कुराते लबों पर,
छू लेना अनकही ख़ामोशी
अनुरागी गांव में कभी।
*मधु वैष्णव ‘मान्या*’
विधा मुक्त स्वरचित मौलिक रचना
जोधपुर, राजस्थान
Anonymous said…
*दिनांक - 06-05-22*
*विषय- धरती हमारी माता*
*विधा-कविता*
*स्वरचित तथा मौलिक रचना*

धरती हमारी माता है, सबको यह समझाना है।
अपनी पूजनीय अंबा से, ऊर्जा हमको पाना है।।
सोने-खाने में ही हमको समय नहीं गँवाना है।
दिल से सच्ची सेवा करते हुए ही आगे जाना है।।
सुंदर-सुगंधित पुष्प हमारे आनंद का प्रतीक हैं।
फूलों के संग काँटों को भी हँस कर गले लगाना है।।
हरियाली से भरी हुई धरती ने हमें समझाया है।
हरे-भरे, फूलों-फलों का आशीर्वाद हमने पाया है।।
सेवा करने वाले लदे हुए पेड़ों ने भी सदा सिर झुकाया है।
हर मानव को देखो कितना धरती माता ने दिलाया है।।
पृथ्वी की निस्वार्थ सेवा हम कभी न भूल पाएंगे।
एक नहीं अनेक बार इनके चरणों में शीश झुकाएंँगे।।
धरती हमारी माता है, हर पल दुआएँ इनकी हम पाएंगे।
पृथ्वी वासी इनके ऋण को कभी नहीं चुका पाएंगे।।

*✍️✍️डॉ. ऋचा शर्मा, करनाल (हरियाणा)*
Anonymous said…
मां
मां तूने मुझे वेदना में जना,
मैं तेरी मुस्कान हूं,
दर्द की उस चीख में,
मैं तुम्हारी ही दवा हूं|
मुझे देख कर तुम दर्द में भी मुस्कुराती हो,
खुश होती हो |
मैं तेरा एहसास हूं,
मैं तेरा विश्वास हूं मां,
मां तूने मुझे वेदना में जना |
उस वेदना के बीच छिपा,
जीवन का सुख,
मां, तू ही देख सकती हो,
तुम ही तो सर्वशक्तिमान हो मां,
मां तूने मुझे वेदना में जना |
तुम ही तो मेरी शक्ति हो मां,
तुझसे ही सीखा है हमने,
रोते हुए हंसना,
तुझसे ही सीखा है हमने,
हर सुख दुख सहना,
मां तूने मुझे वेदना में जना |
अगर वेदना न होती,
तो मैं कहां होती?
दुख के बाद सुख का,
इससे अच्छा उदाहरण और कहां है मां?
मां तूने मुझे वेदना में जना |
डॉ. रंजना मिश्र
107, उस्मान एनक्लेव
सेक्टर O अलीगंज
लखनऊ उत्तर प्रदेश
226024
बहुत सुंदर Di
वाह बहुत खूब
बहुत सुंदर🌹
🌷🌷 **माॅं की ममता** 🌷🌷

**विधा----------पद्य**

**ताटक छंद**

माॅं की ममता बिन माता के ,
और कहाॅं तुम पाओगे ।
अगर दुखाया दिल माता का
चैन नहीं फिर पाओगे ।।

जननी है जग की यह माता ,
करुंणा की है खान यही ।
इसके जैसे इस दुनिया में ,
दूजा कोई और नहीं ।।
नजर उठाकर देख जगत में ,
ढ़ूंढ़ नहीं तुम पाओगे *****
**माॅं की ममता बिन माता के**
**और कहाॅं तुम पाओगे**

नीर नयन में भर कर माता ,
कष्ट अनेकों सहती है ।
पर अपनी दुख संतानों से ,
कभी नहीं वह कहती है ।।
माॅं का दिल जैसा इस जग में ,
ढ़ूंढ़ कहाॅं से लाओगे *****
**माॅं की ममता बिन माता के**
**और कहाॅं तुम पाओगे**

ईश्वर को भी इस माता ने ,
अपनी गोद खिलाया है ।
देख देखकर सुत का मुखड़ा ,
माॅं का मन हर्षाया है ।।
माॅं की ऑंचल की छाॅंवों में ,
जो चाहो सुख पाओगे *****
**माॅं की ममता बिन माता के**
**और कहाॅं तुम पाओगे**

पूत कपूत कभी मत बनना ,
जो चाहो खुशियाॅं पाना ।
जीवन सुखमय हुआ उसी का ,
जिसने भी कहना माना ।।
**राम**कहे माॅं की सेवा कर,
जीवन स्वर्ग बनाओगे *****
**माॅं की ममता बिन माता के**
**और कहाॅं तुम पाओगे**

**रचयिता**

🌹 **रामसाय श्रीवास"राम"(छग)** 🌹
माँ

तरकारी में महक सोंधी सी,
माँ तुम कैसे लाती थी।
दाल बहुत मीठी लगती थी,
कैसे छौंक लगाती थी।

चूल्हा था वो लकड़ी वाला,
और बटोली पीतल की ।
रोज सबेरे धरी पलट कर,
रोज निखरती सोने सी।

बिन मक्खन की रोटी में भी,
स्वाद निराला होता था ।
सिल बट्टे पर रगड़ रगड़ कर,
पिसा मसाला होता था।

भून लिये आलू चूल्हे में,
उसमे नमक मिलाती थी।
वह तो और सुखद होता था,
माँ तुम हमें खिलाती थी।

माँ तुम अब तो चली गयी हो,
एक कहानी लगती हो।
जीवित हो मेरे जीवन में
बहुत सुहानी लगती हो।

सीधे पल्ले के आंचल में,
हम आकर छिप जाते थे।
ढप लेती मुख मेरा उसमे,
हम फिर से खिल जाते थे।

एक शिकायत लेकिन तुमसे,
करने को जी करता है।
गुन छौंके का नही सिखाई,
यह मन बहुत तरसता है।।


पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली उत्तर प्रदेश।
Anonymous said…
प्रतियोगिता
विषय - मां
🙏🏻💐मां का दिल💐🙏🏻
माफ करना बेटा आज गर
जल्दी तुम्हें जगाई थी
मैं तो तेरे स्वास्थ्य के खातिर
ऊंची आवाज लगाई थी

अगर परेशान हो रहे हो
घंटी, मंत्रों के जाप से
तेरी नींद ना उड़ने दूंगी
अपने पैरों के थाप से

सही गलत जब तुम्हें कहूं
तो खो ना देना आपे को
कुलटा ,कूटनी और मंथरा
ना देना नाम बुढ़ापे को

माना की बारी बड़े वाले लड़के की थी
पर आज छोटे के घर खाली
माफ कर देना अगर बुरा लगे
मेरी वजह से तेरी दो रोटी
कुत्ते बिल्ली ने खा ली

तेरे घर दिन पूरे हो गए तो
मुझे यहां से जाना होगा
जिस दिन वहां भी पूरा होगा
वापस फिर से आना होगा

15 दिन तेरे घर खाई
15 दिन ही वो खिलाएगा
हर 31 तारीख की रोटी
राम भरोसे आएगा

तेरी खुशी को जहां कहो मैं
जाना छोड़ दूं
तेरी खुशी को अपना दर्द
बताना छोड़ दूं
मेरे बिन तेरी दुनिया खुशहाल रहे तो
जब कहो मैं सारा जमाना छोड़ दूं

"ममता" की मार्मिक शब्दों से जब
मेरी ममता याद आए
मेरी त्याग तपस्या तुझको थोड़ी
विचलित कर जाए
*********************
तो अपने भाई बहनों को
अपने पास बुलाना तुम
किसी में अपने पिता की झांकी
किसी में मुझको पाना तुम
ममता उपाध्याय
वाराणसी
Anonymous said…
माँ आ जाओ इक बार मेरी सुन लो करुण पुकार..
मेरी विनती बारंबार.. माँ आ जाओ इक बार..
माँ आ जाओ..... माँ आ जाओ....
माँ आ जाओ इक बार मेरी सुन लो करुण पुकार..
*******************************
नहीं कोई यहाँ जग में मेरा.
झूठी मोहमाया का है फेरा.
रिश्ते न तुम बिन भाएं मुझे.
डाले जो हरपल यहाँ डेरा..
माँ तू ही मेरी दरकार..... माँ आ जाओ इक बार.
मेरी विनती बारंबार ....माँ आ जाओ इक बार..
*******************************
माँ सा न कोई चाहूँ हे मां.
पर साथ तेरा ही मांगूं हे मां.
ग़र लूं मैं जनम फिर जग में.
तेरी कोख पुनः पाऊँ हे माँ.
सुनो मेरी विनय करतार..... माँ आ जाओ इक बार..
मेरी विनती बारंबार...... माँ आ जाओ इक बार...
*********************************
कुछ रिश्ते फरिश्ते होते हैं.
जननी से बढ़कर रहते हैं...
धन्य हुआ मैं भी पाकर..
रिश्ता जो बुआ-मां कहते हैं..
मेरी बुआ ही पालनहार....... माँ आ जाओ इक बार..
मेरी विनती बारंबार....... माँ आ जाओ इक बार...
मेरी सुनलो करुण पुकार.. माँ आ जाओ इक बार..
**********"**********************
उनपे भी रब रहमत करना.
सुखसौभाग्य भी उनको देना.
मेरी बिगडी़ बनाने वाली को.
अमृतमय तुम जीवन देना..
सदा मिलती रहे जयकार.... माँ आ जाओ इक बार..
मेरी विनती है बारंबार.. माँ आ जाओ इक बार..
मेरी सुन लो करुण पुकार माँ आ जाओ इक बार..
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
@ सरिता तिवारी राखी
‌जबलपुर मध्यप्रदेश


शीर्षक -माँ

अनोखी थी तू माँ मेरी ,
मेरी जिंदगानी थी
लवों की थी खुशी मेरी
अजीबी मुस्कानी थी।

कभी बिटिया बुलाती कह
कभी लाली बुलाती थी
मीठी-मीठी लोरी गा
मुझको सुलाती थी
निंदिया निगोड़ी भी
माँ बिन नहीं आती थी
अनोखी थी तुम मेरी
मेरी जिंदगानी थी

घुटने पर बिठाकर के
मुंह मेरा धोती थी
आंचल को लहरा करके
मुख मेरा पोंछती थी
मुखड़े को धोकर ही
नींद उसको उचकानी थी
अनौखी थी माँ मेरी
मेरी जिंदगानी थी

स्कूल से आते थे
दौड़ी दौड़ी आती थी
ठंडा ठंडा लाती नीर
थाली लगाती थी
थक गई होगी मेरी लाडो
प्यार की माँ खानी थी
अनोखी थी माँ मेरी
मेरी जिंदगानी थी

पुँढीर कहती है
याद आती है तेरी मां
याद में बेचैनी होती
आंखें भर आती मेरी मां
आज दुनिया में फैली है
तेरी बेटी की मांँ कीरत
अरमाँ रो-रो कहते हैं
आज माँ काश! तू होती
अनौखी थी तू माँ मेरी
मेरी जिंदगानी थी।

गीतकारा
राजवाला पुँढीर
एटा ,उत्तर प्रदेश
माँ जैसा कोई नहीं!

मेरे ख्वाबों में आकर फिर मुझे लोरी सुना जाओ,
मेरे सतरंगी सपनों को आकर फिर सजा जाओ।
किसी पल चैन नहीं आता, कहाँ तू खो गई मैया,
मुझे बाँहों में अपनी तू सुलाकर फिर चली जाओ।।
किसी जब मोड़ पे गिरता हूँ माँ आकर उठाती हो,
कलम -कागज तू जैसे हाथ में लेकर पढ़ाती हो।
तू काशी हो, तू काबा हो, तू अमृत का भरा प्याला,
तू शक्ति हो, तू सृष्टि हो, तू संस्कारों की मूर्ति हो।।
तेरे आँचल में छुप जाऊँ, माँ ऐसा मन मेरा कहता,
तेरी उंगली पकड़ कर फिर ,चलूँ ये मन मेरा कहता।
तू अपने हाथ से रोटी बनाकर फिर खिला जाओ!
तेरे चरणों की धूलि को लगाऊँ मन मेरा कहता।।
मैं अपने मन की पीड़ा को किसी से कह नहीं सकता,
तेरे आँचल की छाया के बिना अब जी नहीं सकता।
मरुस्थल में नदी –सी हो या मीठा हो कोई झरना,
तेरे जैसा माँ दुनिया में कोई भी हो नहीं सकता।

रामकेश यादव (कवि,साहत्यिकार), मुंबई
माँ!

दिनभर सैर - सपाटा करना अच्छा लगता है,
माँ को एक गिलास पानी देना भारी लगता है।
पैरों पे चलना, संभलना,दौड़ना, सिखलाया जिसने,
अब उसकी उंगली पकड़कर चलना भारी लगता है।
खुद भूखी रहकर कभी, भूखा हमें सुलाया नहीं ,
उसे दो वक्त की रोटी खिलाना अब भारी लगता है।
निचोड़ दी जवानी जिसने हमें सजाने -संवारने में,
अब दूध का कर्ज उतारना भारी लगता है।
बड़े फक्र से चट्टान- सा हौसला बनाया मेरा,
उससे मिलना अब गैर-वाजिब लगता है।
बीमार होने पर गिरवी रख देती थी गहना,
उसे एक पुड़िया दवा लाना अब भारी लगता है।
विदेशी कारों में बीवी को घूमना अच्छा लगता है,
माँ का दिल बहलाना अब भारी लगता है।
कहाँ गुम हो गए हमारे संस्कार हमारे घर की गलियों से,
अब पश्चिमी सभ्यता का हाय - बाय अच्छा लगता है।
फेर देती है जब माँ अपने हाथों को इस सिर पर,
दिल्ली का सिंहासन भी छोटा लगता है।
हमें लौटना होगा फिर से अपनी सभ्यता पर दोस्तों!
सर पे हो माता-पिता की दुआ तो जीना अच्छा लगता है।

रामकेश यादव (कवि,साहित्यकार), मुंबई
माता और पिता !

माँ है धरती तो आकाश है पिता,
माँ घर की नींव तो छत है पिता।
माँ फूल की क्यारी तो माली है पिता,
माँ अदहन है तो पकता चावल है पिता।
माँ ख्वाहिश है तो बाजार है पिता,
माँ है कश्ती तो पतवार है पिता।
माँ आंसू है तो मुस्कान है पिता,
माँ घर की लाज, तो सम्मान है पिता।
माँ अगर राह है तो मंज़िल है पिता,
माँ वर्तमान है तो भविष्य है पिता।
माँ कुम्हलाती फसल तो बादल है पिता,
माँ अगर आईना है तो चेहरा है पिता।
माँ अगर सांस है तो रूह है पिता,
माँ है नदी तो सागर है पिता।
माँ गृहस्थी है तो ए.टी.एम. कार्ड है पिता,
माँ है चंदा तो सूरज है पिता।
माँ संस्कार है तो संसार है पिता,
माँ दुवा है तो दवा है पिता।
माँ हँसी है तो तंदुरुस्ती है पिता,
माँ तपती धूप है तो आषाढ़ है पिता।
माँ दीया है तो प्रकाश है पिता,
माँ है दिवाली तो होली है पिता।
माँ आब है, तो दाना है पिता,
माँ सोंधी रोटी है तो चटनी है पिता।
माँ ममत्व की देवी तो नर में नारायण है पिता।
माँ जीवन - चक्र है तो सार है पिता,
माँ हमसफर है तो जमीं का सितारा है पिता।
माँ गीत है, तो संगीत है पिता।
माँ ईश्वर का रूप है तो
मोक्ष का द्वार है पिता।

रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार), मुंबई,




meetu sinha said…
लक्ष्मी बनकर पालन करती,
देती शारदे बन ज्ञान।
शक्ति बनकर रक्षा करती,
माँ तेरी महिमा महान।

जीवन की धूप छांव की,
सीख हमें सिखलाती हो।
ऊँचे-नीचे जीवन पथ की,
रीत प्रतिपल दिखलाती हो।
कराती रहती तुम सदा,
भले बुरे का भान।।
शक्ति बनकर रक्षा करती,
माँ तेरी महिमा महान।।1।।

तुझ में ही त्रिदेव दिखे,
तुझ में ही सृष्टि सारी।
तेरे दान के लिए,
हम सदा तेरे आभारी।
तूने ही डाले हैं मैया,
इस शरीर शव में प्राण।।
शक्ति बनकर रक्षा करती,
माँ तेरी महिमा महान।।2।।

पहली गुरु तुम पहली शिक्षक,
पहली-पहली भगवान।
तुमने हमें तब संभाला,
जब हम थे अनजान।
तेरे ही चरणों में अर्पण,
अपना सारा ज्ञान विज्ञान।।
शक्ति बनकर रक्षा करती,
माँ तेरी महिमा महान।।3।।

तेरे जीवन संघर्ष का,
प्रति फलन है हम।
तेरे त्याग बलिदान का,
साक्ष्य सबल हैं हम।
तू हमारा आधार माँ,
पिताश्री का सम्मान।
शक्ति बनकर रक्षा करती
माँ तेरी महिमा महान।।4।।

डाॅ मीतू सिन्हा, धनबाद
चंद्रकला भरतिया said…
शीर्षक------
" मेरी माँ "
*************
आंचल मेरी माँ का, पावन, पुनीत मनोरम
याद आता नित्य मुझे,माँ का लाड-दुलार अनुपम.
निस्वार्थ भाव से सेवा करती रही ताउम्र
शिकायत कभी किसी से नहीं की माँ ने

ममतामय स्पर्श माँ का,
याद बहुत आता है
मधुर कर्ण प्रिय लोरी गाती
प्यार से थपकी दे- दे
मुझको सुलाती.

कर्ज मां का मुझ पर बहुत है.
उऋण न हो सकते कभी
चाहे जितने हो धनवान.
रग- रग में मेरी, माँ समाई रहती
देती मुझको अमृत जीवन धार.

जब कभी मन उदास, उचाट होता
याद माँ की मुझको आती.
सीख माँ की, पग- पग राह दिखाती.
अपने बच्चों के पालन- पोषण में
अनुकरण माँ की सलाह का करती.

देवी रूप में दर्शन माँ देती
हाथ सिर पर धर देती.
अपने सारे गम, मैं भूल जाती.
सृष्टि का मूलाधार है माँ
यही याद सदा मैं रखती.
*****************************
श्रीमती चंन्द्रकला भरतिया
नागपुर, महाराष्ट्र.
( रचना स्वरचित/ मौलिक है)
मो. नंबर 8208816459.
Anonymous said…
मातृ दिवस एक दिन का नहीं होता बल्कि हर पल हर क्षण मां के पिए होता है।
अपरिमित अपरिभाषित और अनंत होती है मां ।
गम उसे शब्दों में दिवस में नहीं बांध सकते।
विश्व के सभी मां को समर्पित नमन मां को।
मेरी रचना।

माॅं तो माॅं है
**********

याद आ कर के माॅं की रुलाने लगी।
माॅं खयालों में फ़िर आज आने लगी।

नींद आंखो से मेरी बहुत दूर थी।
लोरी माॅं की मैं फिर गुनगुनाने लगी।

माॅं ने चलना सिखाया सही राह पर।
क्या है अच्छा बुरा माॅं बताने लगी।

मुझको मुद्दत हुई माॅं से बिछड़े हुए।
बेसबब याद माॅं की सताने लगी।

माॅं की सेवा में खुद को लगा देना तुम।
माॅं की कृपा ही शोहरत बढ़ाने लगी।

मान देना सदा माॅं को अपनी सुनो।
माॅं तो माॅं है ख़ुशी की खज़ाना लगी।

जब भी जीवन में सॅंकट के पल आ गए
आके ख़्वाबों में ढाॅंढस बंधाने लगी।

मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
आज सुना है मातृ दिवस है
पर सच पूछो तो 'मात्र' दिवस है।
ये इसलिए क्योंकि ;
एक दिन  स्टेटस अपडेट करने से
एक दिन भगवान की तरह पूजने से
एक दिन अपनी स्वर्गीय माँ को याद करने से
एक दिन को माँ के लिए समर्पित कर देने से
ये दिन खास नहीं होने वाला।
मेरी भावना गर तुम जानना चाहते हो
तो ये भी एक मात्र दिवस ही है।
अफसोस!
कितना दिखावटी हो गया है
आज का इंसान।
जानवरों से भी बदतर
भाव शून्य
क्या सिद्ध करना चाहता है
ये इंसान?
यही कि इन सब दिखावों को करके
वह छुपा लेगा अपने उन सब कृत्यों को
जो अविराम ढ़हाता आया है
इसी माँ पर ।
जिसे आज का ये दिन
खास तौर से समर्पित किया है
वह कोई सामान्य जीव नहीं
वह तो सृजन की प्रतिमूर्ति है
उस ख़ुदा की अतुलनीय कृति है।
अरे मूर्ख इंसान!
निश्वार्थ प्रेम कभी दिखावा नहीं करता
नहीं कोई ढोंग दिखाता है
निश्वार्थ प्रेम की मूरत;
वह माँ
हां, वही माँ
जिसके लिए आज तुम अपना स्टेटस
अपडेट कर रहे हैं;
हर दिन अपनी संतान के लिए
बिना किसी स्वार्थ के समर्पित रहती है
और हमेशा रहेगी।
बाकी सब ऐसे ही दिखावा करते आए हैं
और करते  रहेंगे।
जीते जी तड़पाते रहेंगे
और उसी माँ के  मरने के बाद
फूलों से सजे हुए उसके
स्टेटस अपडेट होते रहेंगे।
ऐसे ही औपचारिक
मातृ दिवस मनते रहेंगे।

-प्रवीण कुमार शर्मा
🌹🌹 *मारी प्यारी मां* 🌹🌹

मारे मन री सारी दुविधा दूर वेई जावे है
मारे तन री सारी पीड़ा दूर वेई जावे है
जदी भी रात में मारी प्यारी मां
आईन मने लाड लडावे है ।

मारी नींद और भी गहरी वेई जावे है
जद आपणां नरम नरम हाथ
मां लाड ऊं मारे माथे फिराती जावे है
और मने मिठी लोरी एक सुनावे है ।

मां जदी भी मारो माथो चूमे है
और प्यार सूं मारे बालांने सहलावे है
एक भीगी भीगी सी खुशबू जाणे
सुगंधित फूलां वाला बगीचा ऊं आवे है।

मारे शरीर री दन भर री थकान
जाणे एक पल में मट जावे है
जदी भी रात में मारी प्यारी मां
आईन मने लाड लडावे है ।

पुरूषोत्तम शाकद्वीपी,उदयपुर, राजस्थान
🌹🌹🙏
उठ चुका जब से तेरी घनी छांव का आंचल
तब से ही इस जलती धूप मे तप रहे हैं हम
दिन उगलता है सुना उगता हुआ सूरज
सुहानी सुरीली मीठी भोर को तरस गए हैं हम
जिस आवाज़ में संगीत सरगम रही छिपी
सुनने को वही बहते लहू के संग जूझ रहे हैं हम
विदाई की बेला वो धधका गई जो आग
चिंगारियों में उसकी आज तक सुलग रहे हैं हम
कोई एक दिन मुकर्रर हो न सका कभी भी
समय नदी में लहर लहर " मां" तुम्हें गा रहे हैं हम
विजय लक्ष्मी
हरिद्वार उत्तराखण्ड
8/05/2022
Happy mother's day
अभी अभी
🌹🌹माँ🌹🌹

माँ के लिए क्या लिखूं मैं,
माँ समस्त ज्ञान का भण्डार है।
माँ से ही तो उतपन्न हुई हूँ,
माँ ही मेरा सारा संसार हैं।।

कभी नर्म तो कभी गर्म होकर,
माँ हालातों को संभालती हैं।
परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो,
माँ हिम्मत कभी नहीं हारती हैं।।

माँ के ऊपर लिखने के लिए,
शब्द भी शायद कम पड़ जायेंगे।
माँ की हर एक भावनाओं को हम,
शब्दों में व्यक्त नहीं कर पायेंगे।।


🙏🏼🌹किरन झा 🌹🙏🏼
बहुत याद आती है मां।

सजाती हूं सपनों में अक्सर तुझे।
बहुत याद आती है मां तू मुझे।

छिड़ती हैं ममता की भीनी सी बातें,
भर आती हैं यूं ही खोई सी आंखें,
तस्वीरें कोई उभर आएं आगे,
बुलाती है जैसे तू फैलाए बाहें,
लगा पाए जब न मुझको गले।
बहुत याद आती है मां तू मुझे।

शाखाओं से जब गिरते हैं पत्ते,
झुक जाए डाली हवा से तड़पके,
कुमलाए पत्ते भी सूखे बिखरके,
हिलती रहे डाल उनसे बिछड़के,
मै शाखा की सूरत में पाऊं तुझे।
बहुत याद आती है मां तू मुझे।

हंसती रही हूं बिछड़के भी तुमसे,
लड़ती रही सारे जीवन के गम से,
विखरती नहीं हूं मैं तूफाॅ से डरके,
तुझे सोचती बंद आंखों को करके,
वहीं आस- पास ही पा लूं तुझे।
बहुत याद आती है मां तू मुझे।

रूठूं भी किससे न कोई मनाए,
हर कोई मुझमें कमियां गिनाए,
दिखाए तेरे पथ पे चलती रही हूं
फिर भी मैं मां तेरे जैसी नहीं हूं,
मैं परछाई हूं तेरी ढूंढू तुझे।
बहुत याद आती है मां तू मुझे।

रिंकी कमल रघुवंशी'सुरभि'
विदिशा मध्य प्रदेश।
मां
मां है तो सुखद कहानी है
मां तेरा साथ है तो
जीवन में रवानी है
मां तेरा स्पर्श कराता
यादें रूहानी है
ईश्वर को देखा नहीं पर मां
खुदा रब गॉड की निशानी है
मां मेरी आशाओं पर ओस
की चमकती बूंदे हैं
मां हर पल दिन रैन जाग
रही हम चैन से सोते हैं
अंतर्मन से जो गाया जाए
मां वह गीत सुहानी है
मां करुणा दया की
असीमित सिंधु है
मां मेरी पहचान तेरे
कोख से उपजा बिंदु है
मां सहज सरल सुंदर है
मां से ही प्रीत लगानी है
मां ईश्वर से प्रदत
अनुपम उपहार है
मां पुण्य धरा गगन और
सारा का सारा संसार है
मां के चरणों में है चारों धाम
यही सब की जुबानी है
मां शक्कर घी गुड़ रोटी
और दाल मखानी है
भूख में एक और रोटी
खिलाती जैसे आगम जानी है मां रखती नियत साफ
नजरें उसकी वरदानी है
मां ने अपने लहू से सीख कर
मेरे काया का निर्माण किया
महामृत्यु से युद्ध जीतकर
हमें जीवन का वरदान दिया
मां के दूध और आंचल के
छांव में देवताओं ने
बिहार मानी है
मां तेरा साथ है तो
सुखद कहानी है
तेरा साथ है तो
जीवन में रवानी है
डा बीना*रागी*
*Happy mother's day to all mother's ❤️❤️*

Maa Tujh bin adhura sa hu
Tu hi to jannat tu hai sahara
Tu hi to sukh ka saya he maa
Tu hi meri zindagi ka kinara

Kuch n chahiye ik tumhare siva
Bin tere kaise jiu ye zindgani...

Tumhare achal me panah mile
Itni dua rab se karta hu maa
Dikhlata nahi tujhko par haa
Duniya se me ghabrata hu maa

*Aniket sagar*
माॅं जब मैं मिलने आऊंगी।

माँ जब मैं मिलने आऊॅंगी,मुझको गले लगा लेना।
उलझे हुए मेरे बालों को ,तुम पहले सुलझा देना।

जाने कितने दिनों से अम्मा,
प्यारी नींद नहीं आई।
भूल गई हूं थपकी ,लोरी,
अम्मा जो तुमने गाईं।
अम्मा पहले तनिक बिठा कर,सर मेरा सहला देना।
उलझे हुए मेरे बालों को,तुम पहले सुलझा देना।

पाॅंवों के माॅं नूपुर टूटे,
दिन भर दौड़ लगाने में।
हाथों की सुधि खोयी अम्मा,
सबका स्वाद बनाने में।
रुनझुन वाला नूपुर हमको,अम्मा फिर पहना देना।
अम्मा पहले तनिक बिठा कर,मेरा सर सहला देना।

नटखट माॅंग करूॅं जब अम्मा,
चंदा को बुलवाने की।
जिद कर लूॅंगी फिर से अम्मा,
जिद अपनी मनवाने की।
गोदी में ले अम्मा हमको,फिर से तुम बहला देना।
अम्मा पहले तनिक बिठा कर,सर मेरा सहला देना।

फिर से हमको गुड़िया वाली,
लाल ओढ़निया ला देना।
फिर से गुड्डा, गुड़िया वाला,
अम्मा ब्याह रचा देना।
लोरी के संग हमें सुलाकर,माॅं हमको फुसला देना।
अम्मा पहले तनिक बिठा कर,सर मेरा सहला देना।

पुष्पा श्रीवास्तव "शैली"
रायबरेली।
कविता- स्वतंत्र विधा
शीर्षक - जननी माँ

मांँ तू अथाह प्रेम का सागर,
कहांँ से लाऊंँ शब्दों की गागर।
प्यार तुझसे इतना है मांँ,
प्यार की तू तो मूरत है मांँ।
प्यार लुटाने वाली मांँ,
बलिदानों की तू गाथा‌ है ।
खुद गीले में सोकर तू,
सूखे में सुलाने वाली है ।
भूखी रह खुद औरों की,
भूख मिटाने वाली है ।
आंसू भी गर आ जाए ,
आंचल से पोंछ मुस्कुराती है।
परिवार की खुशहाली में,
बच्चों की सफलता में,
सब कुछ भूल जाने वाली हो।
बस गुस्से में भी लाड दिखाएंँ,
अथाह प्यार लुटाने वाली है।
परेशानी में भी मुस्कुराने वाली‌,
लायक हमें बनाने को,
बरबस ही गुस्सा आया।
सुंदर संस्कारों से पूरित करने,
तूने अपना जी जान लगाया ।
मांँ तेरे आंँचल से प्यारा ,
प्यार कहीं ना पाया।
पूरे जहान में तुझसा मांँ,
हमदर्द कोई नहीं पाया |
मांँ तुझे नमन , मांँ तुझे नमन।

रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
शाहदरा, दिल्ली
( 8 मई मातृत्व दिवस पर)

" प्रथम गुरू माँ "
------

माँ तेरे सम प्रिय नहिं कोई,
तू ही सबसे प्यारी है।
माँ तू ही है धड़कन मेरी,
तू ही जान हमारी है।..2

मेरी हर साँसों में बसती।
तू ही लाड़-प्यार व मस्ती।
सर पर तेरा हाथ है जब तक,
नहीं कोई लाचारी है।। तू ही...

साथ तेरा जीवंत बनाए।
तेरी शीतल छाँव सुहाए।
मेरे जीवन रूपी उपवन,
की तू ही फुलवारी है।। तू ही...

मार्गदर्शिका प्रथम गुरू माँ।
'प्यार' तुझी से हुआ शुरू माँ।
सहनशील ममतामयी माँ,
तू रिश्तों में भारी है।। तू ही...

माँ तूने जहान दिखलाया।
अमृत स्तनपान कराया।।
हमें जितने आगे लाने,
तू हर बार ही हारी है।। तू ही...

मौलिक/अप्रकाशित-

अमर सिंह राय
नौगांव, मध्यप्रदेश
आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया॥

उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है॥

माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है।
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है॥
लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है।

रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है॥
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोयी है।

खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोयी है॥

कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आँचल में छुपाया है।
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है॥

माँ के चरणो में मुझको जन्नत नजर आती है।
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है॥

अनुपमा सिंह..


माँ अमृत की धारा!

जैसे बहती अमृत की धारा,
वैसी होती है माँ।
जैसी कोई बासंती पवन,
वैसी होती है माँ।

घर का बोझ पहाड़ के जैसे,
सिर अपने है ढोती माँ।
मानों हो कोई परी की लोरी,
देखो वैसी होती माँ।

अपनी संतानों के सुख में,
बीज खुशी का है बोती।
हर संकट का ढाल हो कोई,
वैसी होती है माँ।

माँ की गोद के आगे देखो,
हर सिंहासन है छोटा।
मानों घर में ईश्वर आया,
वैसी होती है माँ।

दादी,काकी,मौसी,नानी,
सारे गुण उसमें होते।
महके जैसे धनिया की पत्ती,
वैसी होती है माँ।

जब घर से हम बाहर जाते
लाख दुवाएँ देती माँ।
कलरव करते डाल पे परिन्दे,
वैसी होती है माँ।

करती घर को देखो रोशन,
बुनकर अपने सपनों से।
एक था हामिद उसकी अमीना,
वैसी होती है माँ।

निर्मल,कोमल,अविरल,शीतल,
गंगा जैसी पावन माँ।
चंद्रशेखर आजाद बना दे,
वैसी होती है माँ।

आँखों में ममता का सागर,
जाड़े की वो मीठी धूप।
करती रिश्तों की तुरपाई,
वैसी होती है माँ।

पूर्ण नहीं है जग में कोई,
पूर्ण जहां में केवल माँ।
इंद्र धनुष के रंगों जैसी
वैसी होती है माँ।

माँ से बड़ा न कोई जग में,
हर माँ को मेरा वंदन।
मानों धरा की धुरी जैसी,
वैसी होती है माँ।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई











Sunita Jauhari :- Thanks for visiting my blog !! " सब पढ़े और पढ़ाएं सबका मनोबल बढ़ाएं " - सुनीता जौहरी