बच्चें
मन के सच्चेसारे जग के आंख के तारें,
यह वो नन्हे फूल है जो
भगवान को लगतें प्यारें ।।
इन सुंदर पंक्तियों के साथ आइएं हम सब भी बच्चें बन जाएं और उनकी भावनाओं को समझते हुए कोई गीत रच जाएं, उठाइएं कलम और लिख दीजिए एक बाल गीत 🥳
नियम:
१-रचना पद्य में की जाएगी।
२-रचना की लाइनें अधिकतम 20 तक हो सकती है।
३-रचना में किसी भी तरह का जातिगत अथवा राजनीतिक व अपशब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
४-सभी प्रतिभागियों को ही सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया जाएगा।
५-प्रथम, द्वितीय ,तृतीय आने वाले प्रतिभागियों को भी ई सर्टिफिकेट दिया जाएगा तथा उनकी रचना आगामी सुनीता पत्रिका में छापी जाएगी ।
६-समय सीमा के पश्चात प्राप्त रचनाओं को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
७- निर्णायक मंडल का निर्णय अंतिम व सर्वमान्य होगा ।
9 Comments
गरज रहा आकाश, आओ प्यारे
नन्हीं नन्हीं बूँदोंमें ,भींगो प्यारे ।
राजा आजा, विमला आजा, आजा राहुल भैया ,
मिलकर सब बनाएँ, कागज की एक नैया।
सरपट माँ की गोद से चुन्नू दौड़ा -दौड़ा आये।
भाग -भागकर नैया पकड़े पकड़ खूब इतराये ।
नाव छूटी ,हाथ में आया नन्हा मेंढक,
मुँह खोलकर देख रहा
चुन्नू मेंढक ।
भागा ,चुन्नू उसके पीछे
ताली बजा-बजाकर ,
राजा हँसता ही-ही विमला नाच-नाचकर ।
छोड़ी नाव कागज की मेढक के पीछे दौड़े,
चुन्नु भैया हाथ नचा -नचा मेढक को फोड़े।
आगे -आगे मेढ़क भागा पीछे चुन्नु राजा
मेढक का दिया बजा उसने बैंड बाजा।
शोर सुनकर घर से निकली अपनी ताई कमला,
पकड़ थाम ली उसने अपनी विमला।
देख तमाशा वो हँसे पेट पकड़कर,
हँसते -हँसते आँसू निकले झर-झर।
कीचड़ में सब सने हुए थे, गलियों में करते शोर,
बच्चों संग नाच रहे जंगल के सारे मोर।
इंद्र धनुष है निकला ,सूरज करता चमचम,
सारे बच्चे घर चले,करते हुए छमछम।
वर्षा संग बच्चे
गरज रहा आकाश, आओ प्यारे
नन्हीं नन्हीं बूँदोंमें ,भींगो प्यारे ।
राजा आजा, विमला आजा, आजा राहुल भैया ,
मिलकर सब बनाएँ, कागज की एक नैया।
सरपट माँ की गोद से चुन्नू दौड़ा -दौड़ा आये।
भाग -भागकर नैया पकड़े पकड़ खूब इतराये ।
नाव छूटी ,हाथ में आया नन्हा मेंढक,
मुँह खोलकर देख रहा
चुन्नू मेंढक ।
भागा ,चुन्नू उसके पीछे
ताली बजा-बजाकर ,
राजा हँसता ही-ही विमला नाच-नाचकर ।
छोड़ी नाव कागज की मेढक के पीछे दौड़े,
चुन्नु भैया हाथ नचा -नचा मेढक को फोड़े।
आगे -आगे मेढ़क भागा पीछे चुन्नु राजा
मेढक का दिया बजा उसने बैंड बाजा।
शोर सुनकर घर से निकली अपनी ताई कमला,
पकड़ थाम ली उसने अपनी विमला।
देख तमाशा वो हँसे पेट पकड़कर,
हँसते -हँसते आँसू निकले झर-झर।
कीचड़ में सब सने हुए थे, गलियों में करते शोर,
बच्चों संग नाच रहे जंगल के सारे मोर।
इंद्र धनुष है निकला ,सूरज करता चमचम,
सारे बच्चे घर चले,करते हुए छमछम।
छोटा बच्चा
मैं तो छोटा बच्चा हूँ,
पर मैं मन का सच्चा हूँ,
मैं तो सबसे अच्छा हूँ....
नहीं किसी से लड़ता हूँ,
मन लगाकर पढ़ता हूँ....
मेरी टीचर आती है,
हर दिन नए पाठ पढ़ाती है....
मेरे मम्मी- पापा प्यारे है,
सारे जग से न्यारे है....
मन करता है मेरा भी,
धूल मिट्टी में खेलने का,
पर मुझे, गन्दा हो जायेगा बेटा,
कहकर जाने नहीं देते....
लेकिन बड़ा होकर मैं,
एक दिन बॉर्डर पर जाऊंगा,
दुश्मन को मार भगाऊंगा,
भारत माता की रक्षा कर,
प्यारा तिरंगा लहराऊंगा
इस मिट्टी का तिलक लगाकर,
अपनी पहचान बनाऊंगा....
पर अभी तो मैं बच्चा हूँ,
पर मैं मन का सच्चा हूँ,
मैं तो सबसे अच्छा हूँ....
😊😊
हेमलता साहूकार
कुरुद
(छत्तीसगढ़)
रविवार छुट्टी का दिन
आज छुट्टी है प्यारा दिन रविवार का
बच्चो के इन्तजार का ।
नन्हे नन्हे प्यारे प्यारे
निर्मल और स्वच्छ दिल के सारे ।
न कोई छल और न कोई प्रपंच
उन्हे लगते प्यारे ।
आज हमारी छुट्टी चलो ,मस्ती करते
जीभर कर खेले,मन भर कर खाऐ।
चलो घुमने दोस्तो के संग
हिलमिल कर गले लगाए।
मनमौजी शरारत करे
आज नही कोई रोकने वाले ।
आज नही कोई टोकने वाले
मन मर्जी नाचे गाये ।
उधम खुब मचाए
घर पर भी थोड़ा शरारत कर ले ।
मम्मी के नाको मे दम कर दे
कभी खिलौना तोड़े कभी भाई को रूलाए।
मम्मी बोली स्कूल मे ही ठीक रहते ।
क्यो छुट्टी होती है बच्चे बोले
शरारत करने हा हा हा
कल फिर बंधन मे बंध जाते ।
बच्चे मन के सच्चे
सारे जग के आखो के तारे ।
नीलम प्रभा सिन्हा
बालगीत प्रतियोगिता
मुन्नी और मुन्ना
पापा बोले चलो मुन्नी, बाजार जाएँगे l
मुन्ने को भी संग घुमा लाएँगे l
मुन्ना बोला मैं तो बर्गर खाऊँगा l
मुन्नी बोली मैं तो पिज्जा खाऊँगी l
मम्मा हम तो बस.. यही खाएँगे l
हाँ! जी हाँ! बस.. यही खाएँगे l
चुन्नू. मुन्नू भी तो देखो आएँगे l
रंग बिरंगे खेल और खिलौने लाएँगे l
चॉकलेट और मिठाई भी तो ख़ाएंगे l
जो रुठेगा फ़िर उसे भी मनाएँगेl
एक.दो तीन चार गिनती सिखाएंगे l
6, 7, 8, 9 ,10 बस l
अब सारे गीत मिल कर गाएँगे l
खेल खेल में संख्या भी सिखाएँगे l
लाल काला नीला पीला रंग लाएँगे l
टीचर को कहानी कल हम सुनाएँगे l
अब डांस क्लास में हम जाएँगे l
फोटो भी मिल कर सब खिचाएंगे l
पर घर का खाना ही खाएँगे l
बर्गर पिज्जा को हाथ न लगाएंगे ll
वंदना घनश्याला की ✍️क़लम से
गीत
*बच्चे मन के होते सच्चे*
बच्चे मन के होते सच्चे, आँखों के हैं तारे।
नन्हे पुष्पित से होते हैं,लगते प्रभु को प्यारे।।
कच्ची कलियाँ सा मन इनका, मत तोड़ो ये कलियाँ।
प्यार नेह का दो पानी, खिलती है हृद बगिया।।
इन्हें खेलने पढ़ने दो तुम, बचपन सदा सँवारे।
बच्चे मन के होते सच्चे, आँखों के हैं तारे।
नैतिक संस्कृति की हो माटी, बीज उगे संस्कारी।
छुपा सत्य का दर्पण इनमें, बने सत्य की क्यारी।।
झूठ लोभ से परे रहे ये, सबके बने दुलारे।
बच्चे मन के होते सच्चे, आँखों के हैं तारे।
सबल बने बुनियादे जब ये, तोड़ सके न इरादे।
बच्चे बनते आज्ञाकारी, करते तुमसे वादे।।
बच्चे दिल के कोमल होते, हम ही उन्हें सुधारे।
बच्चे मन के होते सच्चे, आँखों के हैं तारे।
लेखिका
डॉ प्रियंका भूतड़ा प्रिया
बाल गीत प्रतियोगिता
"हम छोटे बच्चें हैं"
हम छोटे बच्चे हैं,राष्ट्र निर्माण में हाथ बटाऍंगें ।
एक- एक पौधा हम लगाकर धरा सजाऍंगे ।
प्रतिदिन पानी देंगे, पौधे से पेड़ बनाएगें... ।
हम छोटे बच्चे हैं, राष्ट्र निर्माण में हाथ बटाऍंगे...
इधर- उधर कचरा न फेंकेंगे ,
जो कचरा दिखेगा उसको डिब्बे में डालेंगे ।
प्लास्टिक व पाॅलीथीन को ना कहेंगे ,
जूट व कपड़े का झोला घर से ले जाऍंगे.. ।
हम छोटे बच्चे हैं, राष्ट्र निर्माण में हाथ बटाऍंगें...
माॅं के हाथ बनी रोटी- सब्ज़ी हमको है खानी ,
पिज़्ज़ा बर्गर को बाय-बाय अब तो है कहनी ।
दूध ,लस्सी ही पीएगें, कोलड्रिंक को न हाथ लगाऍंगे...।
हम छोटे बच्चे हैं, राष्ट्र निर्माण में हाथ बटाऍंगे...
चुन्नू ,मुन्नू आओ हम साइकिल से स्कूल चलें,
स्कूल जाने के लिए स्कूटर, गाड़ी की न ज़िद करें ।
प्रदूषण न होगा , पर्यावरण भी स्वच्छ होगा ।
अपना छोटे से सहयोग से राष्ट्र निर्माण में योगदान होगा।
यह संदेश घर- घर हम पहुॅंचाऍंगे....।
हम छोटे बच्चें हैं , राष्ट्र निर्माण में हाथ बटाऍंगें..।।
नीता माथुर ,'नीत' ,लखनऊ,(उत्तर प्रदेश)
स्वरचित/मौलिक
नन्हे नन्हे प्यारे-प्यारे
फूलों जैसे न्यारे न्यारे
आंगन की फुलवारी जैसे
बच्चे मुझको लगते प्यारे
घर की रौनक हैं यह बच्चे
घुल मिलकर सब हैं यह रहते
भेदभाव को न ये जाने
प्रेम की बस भाषा पहचानें
तुम भी खेलो मैं भी खेलूं
तुम भी खाओ मैं भी खाऊं
एक दूजे का हाथ पकड़ कर
जीवन पथ पर बढ़ता जाऊं
सच का साथ कभी न छोड़ूं
आंधी तूफानों से खेलूं
बड़े बुजुर्गों की बातों को
अपने जीवन में अपनाऊं
दीन दुखी का बनूं सहारा
मात पिता का बनूं पुजारी
देश की रक्षा की खातिर मैं
तन मन और सर्वस्व लुटाऊं।
डॉ मंजुला पांडेय