तू सागर है उन्मुक्त गगन का
मैं अविरल नदी जलधार प्रिये
विरही उर को तृप्त करों तुम
झमाझम बरसाओं फुहार प्रिये ,
सावन में भी तन-मन जलता है
निज उर नीरव के दृगबिम्ब तलें
हौले-हौले सूर - ताल मिला लो
हाथ पकड़ लो लग जाओं गलें,
झिरझिर बहें सूनी अंखियां मेरी
जिया में हाय ये कैसी हूक जगें
हुई मैं बावरी पावन प्यार में तेरे
दिल में मेरे प्यार की बयार चलें,
कब बनूंगी मैं तेरी हृदयगामिनी
जनम-जनम की यह साध लिएं
बिखरी श्वेत चंचल चपल चांदनी
चकित पूर्ण चंद्र शीतल छांव तलें।।
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