बचपन
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गली से गुजरते बच्चों को हंसते -खेलते देखकर
अपना वो गुजरा बचपन का सुहाना जमाना
याद आ गया,
हम भी चलाते थे कागज के जहाज पानी में
कागज़ की वो कश़्ती बरसाती पानी पर चलाना
याद आ गया,
बेवजह हंसना-मुस्कुराना, रोकर घर सर पर उठाना
एक छोटें से खिलौने के लिए जिद पर अड़ जाना
याद आ गया,
कांच की गोलियों से खेलना और इकट्ठा करना
गिल्ली -डंडा से गिल्ली को दूर और दूर उछालना
याद आ गया,
मां से कभी तो कभी पापा से बेवजह जिद करना
मां का मनाना और फिर बेवजह मेरा रूठ जाना
याद आ गया,
न खुशी की फिकर न था कोई जहा़न का गम
मां का मां शब्द बार-बार रटाना, उनका मुस्कुराना
याद आ गया,
गुड़ियों की शादी ,सहेलियों के संग समय बिताना
रंग-बिरंगी तितलियों के पीछे-पीछे दौड़ लगाना
याद आ गया,
स्कूल की मस्ती , सहेलियों के टिफिन की चोरी
फुस-फुसाकर क्लास में सखियों संग बतियाना
याद आ गया,
स्कूल की छुट्टी पर घर को जाते चपरासी को सताना
देर से घर आने पर मां का डांटना और गले लगाना
याद आ गया,
काश! लौट आए बचपन के वो सुनहरें सुहानें दिन
राजा बनना और नन्ही सी प्यारी रानी ढूंढ लाना
याद आ गया ।।
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© सुनीता जौहरी
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